इन्सानियत के दुश्मन आप और हम
शिक्षा को मानव विकास का प्रमुख स्रोत कहा जाता है। शिक्षा मानव धर्म के प्रचार व प्रसार में सकारात्मक भूमिका निभाता है। मानव जीवन में भौतिक अध्यात्मिक उन्नति के लिए शिक्षा व मानव धर्म का सन्तुलन बहुत जरूरी है। इन्सानियत को अपने शब्दकोष में शामिल करना होगा। शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्ति का चरित्र निर्माण व गुणवत्ता पूर्ण जीवन है। ज्ञान व शिक्षा का समागम ही मनुष्यों में अच्छे व शालीनता को सिखाता है।
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इन्सानियत के दुश्मन आप और हम |
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ज्ञान-विज्ञान की महती तकनीकी ज्ञान के द्वारा हर ओर अपने झन्डे गाड़ रहे है। तकनीकी का सहारा लेकर असंभव को संभव किया जा रहा है। इस तकनीकी का भर-भरपूर प्रयोग हम आम जनजीवन में प्रचुर मात्रा में हो रहा है। अब हम रोबोट की तरह अपने कार्यो को तो बड़ी कुशलता से सम्पन्न कर रहे है मानवीय संवेदनाओ मूल्यो का दूसरा पक्ष एकदम अछूता सा रह गया है। हम एक तरफ भौतिक तरक्की तो कर रहे है किंतु हम अपनी भावनाओं, मूल्यों दया क्षमा उदारता कोमलता की भावना से शून्य होते जा रहे।
मानवीय मूल्यों को एक क्षण के लिए भी पास नही फटकने देते। मनुष्य से मनुष्य का लगाव से जैसे पीछे छूटता जा रहा है। हर पल अंधी दौड़ में दौड़ते हुए जीवन की उंचाइयों के शीर्ष में पहुंच कर भी मन के किसी कोने में दबे मूल्यों को छोड़ते जा रहे है। एक मनुष्य अपने ही बुने जाल में उलझ कर रोबोट की तरह कार्य करते हुए जीवन के अन्तिम पड़ाव में पहुंच जाता जहां उसे केवल अपनी भावनाओं को साझा करने व उसे सुनने समझने वाला कोई नही होता। वह एक-एक दिन गिनकर से दुनिया से विदा हो जाता है।
मानवीय भावनाओ से रहित युवा अपनी किसी भी समस्या को साझा नहीं कर पाता तथा अन्दर ही अन्दर घुटन महसूस करता है। अन्दर ही अन्दर कितना खोखला है कि मां-बाप भाई-बहन बच्चों व नाते-रिश्तेदारो पर किसी प्रकार का उत्साह नही प्रकट करते केवल आधुनिक तकनीकी के गुलाम होकर न घर के रहे न घाट के। सबका समान आदर करना, किसी को दुख न पहुंचाना क्षमा करना आदि तो उनके शब्दकोष में नहीं है ।
मानवीय भावनाओं से रहित मानव एक निरंकुश हो सकता है। किन्तु पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण उसे एकाकी जीवन जीने को मजबूर करता है।
बच्चो का विकास किताबों के ज्ञान से होता है किन्तु संस्कारों की शिक्षा तो परिवार व समाज से मिलती है। हम और हमारे बच्चों में ही पूरी दुनिया सिमटती जा रही है। हमारे आस-पास क्या घटित हो रहा है उस पर तटस्थ रहते है।
समाज में रहने के नियम कायदे कानून है किन्तु इनको तोड़ते हुए अनैतिकता भ्रष्टाचार को गले लगाकर संस्कारहीन व दिशा हीन युवाओ की फौज तैयार कर रहे है। सहनशीलता व आपसी सौर्हाद्य का लोप हो गया है। हर वस्तु के पैसे के बल पर खरीदने की तमन्ना ही व्यक्ति को अशान्ती व विरक्ती के मार्ग पर ले जाती है।
हमने बचपन में एक कविता पढ़ी थी जिसमें ईश्वर ने हमारी झोली में हर वस्तु को डाल दिया किन्तु अपने पास शान्ति को रख लिया। आधुनिक समाज की अति भौतिकवादी सोच से उब कर व्यक्ति शान्ति की खोज में भारत की सनातन संस्कृति की ओर झुकता है। खुशी व संतोष व सुख आदि गुणो को विकसित करना होगा। अहंब्रह्ास्मि के सिद्धान्त से अलग वसुधैव कुटुम्बकम् अर्थात सम्पूर्ण विश्व ही हमारा घर के सिद्धान्त की स्वीकार करना होगा।
माता-पिता अध्यापको शिक्षविदो व समाजिक व राजनैतिक सभी वर्गाें के लोगो को संस्कारवान व चरित्रवान पीढ़ी को पल्वित व पुष्पित करने के लिए प्रेरित करना होगा। संस्कृति विहीन युवा समाज अनैतिक भ्रष्टाचार छलप्रपंच को खलनायक बन जाएगा। वर्तमान समय में शिक्षा प्रणाली चरित्र-निर्माण व राष्ट्निर्माण की जगह शिक्षित व्यक्ति के सफलता का पैमाना उसके धनोर्पाजन की क्षमता पर निर्भर है। कम समय में अधिक से अधिक धन कमाने के लिए किसी भी तरह के भ्रष्टाचार को तजरीह दे रहा है अध्यात्मिकता और भौतिकता का अनूठा संगम ही भारत के विश्वगुरू बनने का बीज मंत्र है।
2 comments:
Nice written
Very well written 👍
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