प्लास्टिक प्रदुषण पर्यावरण और स्वास्थ्य

प्लास्टिक प्रदुषण पर्यावरण और स्वास्थ्य

    निःसंदेह हम प्लास्टिक युग में जी रहे हैं, जिधर नजर उठाइए उधर ही प्लास्टिक के उत्पादों का भरपूर मात्रा में प्रयोग हो रहा है। आजकल छोटी सुई बनाने से लेकर हवाई जहाज के निर्माण तक में प्लास्टिक का प्रयोग किया जाता है। यह पैट्रो-केमिकल अर्थात् प्रेटोलियम पदार्थ से बनाया जाता है। यह बायोडिग्रेडेबल नहीं है अर्थात् यह फेंके जाने के बाद पूर्णतया नष्ट नहीं होता। यह एक सस्ता, टिकाऊ तथा बिना किसी के प्रभाव के लम्बे समय तक प्रयोग किया जा सकता है। अब हम यह कह सकते हैं कि जो प्लास्टिक एक बार प्रयोग कर फेंक दी जाती है जैसे प्लास्टिक की थैली, मग, बाल्टी, शंेविग की ट्यूब, टूथपेस्ट, पानी की बोतल, पेप्सी की बोतल, शैम्पू की शीशी आदि, उसे कचरे के ढेर में फेंक दिया जाता है, जो रिसाइकिल नहीं हो पाती। यह पर्यावरण प्रदूषण के लिए गम्भीर चुनौती बन गई है। अब यहाँ पर यह समस्या आती है कि प्रयोग कर फेंके गये प्लास्टिक की थैलियाँ, पैकेजिंग प्लास्टिक आदि का निस्तारण कैसे किया जाए। जो कि पर्यावरण और व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।


प्लास्टिक प्रदुषण पर्यावरण और स्वास्थ्य
प्लास्टिक प्रदुषण पर्यावरण और स्वास्थ्य   
    पूरे विश्व में प्रतिवर्ष करीब 500 बिलियन प्लास्टिक का उत्पादन होता है जिससे तीन बार पृथ्वी को लपेटा जा सकता है। करीब आठ मिलियन प्लास्टिक को समुद्र में फेंका जाता है।

    फिक्की के अनुसार भारत में करीब बारह मिलियन प्लास्टिक का उपयोग प्रतिवर्ष होता है, जिसमें केवल नौ से दस प्रतिशत कचरे की रिसाइकल हो पाती है। पाँच मिलियन प्लास्टिक को कूड़े में फेंक दिया जाता है।

    वल्र्ड इकोनामिक फोरम की रिपोर्ट के अनुसार 2050 वर्ष तक में समुद्र में  फेंके जाने वाले कचरा जलीय जीव-जन्तु से ज्यादा मौजूद रहेगा।

    बी0बी0सी0 की रिपोर्ट के अनुसार केवल दो सौ में से एक प्लास्टिक की थैली ही रिसाइकल हो पाती है। करीब-करीब 50 प्रतिशत प्लास्टिक को प्रयोग कर फेंक दिया जाता है जिसकी रिसाइकल नहीं हो पाती। यह पर्यावरण प्रदूषण को चुनौती देती है। यहाँ पर पर्यावरण प्रदूषण को निम्न भागों में विभक्त किया गया है-


वायु प्रदूषण
   अगर इन प्लास्टिक के कचरे को ढेर को एकत्रित करके जला दिया जाता है तो प्लास्टिक के जलने से उत्पन्न कार्बन मोनोआक्साइड व दूसरे रसायनिक पदार्थ वायु में फैल जाते हैं, जिससे वायु की गुणवत्ता प्रभावित होती है। बादलों में काला कोहरा छा जाता है तथा सांस लेने में परेशानी होती है।


भूमि प्रदूषण
  दैनिक उपयोग करने के बाद कूड़े-कचरे में प्लास्टिक की थैलियों को फेंक देेने पर सड़क में घूमने वाले पशु गाय, बैल, बकरी आदि भोजन समझकर खा जाते है जिनसे उनकी मृत्यु हो जाती है। ग्रामीण अंचलों में अक्सर भोज आयोजन, विवाह आदि समारोहों में प्लास्टिक के कप-प्लेट आदि का प्रयोग किया जाता है जिसको की मिट्टी में दबा दिया जाता है। वह 500 वर्ष तक नष्ट नहीं हो सकते जिससे धीरे-धीरे भूमि की ऊर्वरक क्षमता नष्ट हो जाती है तथा भूमि बंजर हो जाती है।

भू-जल प्रदूषण
  अगर इस कचरे को जमीन में दबे रहते हुए कुछ वर्ष बीत जाते है तो वह ग्राउण्ड वाटर लेबल में चला जाता है। भू-जल स्रोतों में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण घुल जाते हैं। वह पानी की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। भू-जल में आर्सनिक तत्व जल में घुल जाते हैं जिससे मनुष्यों में इण्डोक्राइन स्वास्थ्य समस्या उत्पन्न हो जाती हैं। अगर यह प्लास्टिक कचरा नदी, नालों में पहुँच जाता है तो नाली जाम की समस्या उत्पन्न करता है। इससे मच्छर आदि पनपते हैं।

नदियों, झरनों व समुद्र में प्रदूषण
    प्राकृतिक जल-स्रोतों नदियों, झरनों आदि में फेंके गये थैलियाँ व बोतल प्राकृतिक सौन्दर्य को प्रभावित करते हैं तथा उनका स्वतः प्रवाह बाधित होता है। करीब-करीब अरबों टन कचरा समुद्र में फेंका जाता है। जिससे समुद्र में पाये जाने वाले जीव-जन्तु मछली, सील, कछुआ आदि इन प्लास्टिक को भोजन समझकर खाते हैं जिससे इन प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है।
   एक सर्वेक्षण के अनुसार हम यह कह सकते हैं कि समुद्र में पाया जाने वाला समुद्री नमक (सेंधा नमक) फलाहार में प्रयोग किया जाता है। उसमें भी प्लास्टिक के कुछ अंश पाये गये हैं। 


प्लास्टिक प्रदूषण व स्वास्थ्य
   फूड चेन उद्योग के अन्तर्गत खाद्य सामग्री की थैलियाँ, प्लास्टिक के प्रयोग में आने वाले कप-प्लेट, बोतल आदि में खाने से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़़ता है। प्लास्टिक के बर्तन में गर्म खाना खाया जाता है तो प्लास्टिक के रसायनिक पदार्थ भोजन में मिल जाता है जिसमें व्यक्ति के शरीर में कुछ प्लास्टिक के अंश चले जाते हैं। इससे कैन्सर आदि घातक बीमारियों को जन्म देते हैं। सस्ते प्लास्टिक के डिब्बों में खाना रखने से उसके रसायन भोजन में मिल जाते हैं। लम्बे समय तक फ्रिज में रखी गई प्लास्टिक की बोतले भी संक्रमित हो जाती है। प्लास्टिक के बोतल में बन्द पेय पदार्थ भी सूर्य की गर्मी के सम्पर्क में आने से केमिकल परिवर्तन करते हैं जिससे लोग कालान्तर में रोग के शिकार होते हैं। प्लास्टिक युक्त गिलास-प्लेट में गर्म खाने को परोसने में खाना प्रभावित हो जाता है।प्लास्टिक का प्रयोग कास्मेटिक सौन्दर्य प्रसाधनों में भी किया जाता है जिससे लोगों को चर्म रोग की समस्या का सामना करना पड़ता है।


यहाँ पर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए उठाये गये प्रयासों के बारे में उल्लेख करते हैं।

      इस वर्ष 5 जून 2018   को मनाये गये   ‘विश्व पर्यावरण दिवस 2018’ की थीम बीट प्लास्टिक पाल्यूशन रखी गई है जिसकी मेजबानी भारत ने की थी।

      अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यूनाइनेट नेशन इनवायरमेन्ट असेम्बली में 200 देशों द्वारा समुद्री कचरे को पाँच वर्षों के अन्दर उसको निकालने का प्रयास किया जा रहा है। रवांडा व स्विट्रजरलैण्ड में प्लास्टिक का प्रयोग पूर्णतया प्रतिबन्धित है।

       यूनाइटेड नेशन इनवायरमेन्ट डेवलपमेन्ट प्रोगाम द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को चैम्पियन आफ अर्थ’ का खिताब दिया है तथा 2022 तक भारत में कचरे को मुक्त करने का प्रयास किया जायेगा।

  यहाँ पर प्लास्टिक के कचरे का प्रबन्धन और निस्तारण कैसे किया जाए जिससे कि प्रदूषण की समस्या की विकरालता को कम किया जा सके-

1. प्रधानमंत्री जी ने अपने कार्यक्रम ‘मन की बात’ में लोगों से सीधा संवाद करते हुए प्लास्टिक के उपयोग को सीमित करने का आवाह्न किया है। सरकार द्वारा चलाये गये ‘स्वच्छता अभियान मिशन’ के तहत प्लास्टिक कचरे को उद्गम स्थल पर ही अलग कर उसे रिसाइकल के लिए भेजा जायें।

2. उच्च गुणवत्ता वाले वैज्ञानिक मानकों में बने उत्पादों का प्रयोग कर जिससे व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े तथा बायोडिग्रेडेबल उत्पादों का प्रयोग किया जाये। 50 माइक्रोन से कम मोटाई वाले थैलियों को पूरी तरीके से बन्द कर दिया जायें।

3. प्लास्टिक की जगह पर कागज, जूट व बाँस के लुग्दी से बनी थैलियों का प्रयोग किया जायें।प्लास्टिक की थैलियों को सड़क एवं भवनों के निर्माण में प्रयोग किया जायें जो मजबूत व सस्ता साधन उपलब्ध होगा।

4 स्कूल के पाठ्यक्रमों में प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए तथा उसके प्रयोग में सावधानी बरतने के लिए समझाया जाये। कागज ताँबा, पीतल, काँसा आदि के बर्तनों का प्रयोग खाने के लिए किया जायें। जागरूकता अभियान के तहत घर घर जाकर प्लास्टिक को पूर्णतया प्रतिबन्ध लगाने के लिए कहा जायेगा। प्लास्टिक के कचरे को बाॅय-बैक पालिसी के तहत खरीद कर उसकी रिसाइकिलिंग किया जाये, जिससे प्रदूषण कम होगा।

    सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर उठाये गये प्रावधानों में प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेन्ट अधिनियम के अनुसार एक बार के प्रयोग वाली प्लास्टिक तथा मल्टी लेयर्ड प्लास्टिक को तरीके से बाहर करना है।

    केन्द्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा सालिड वेस्ट मैनेजमेन्ट अधिनियम के अनुसार प्लास्टिक  थैलियां गिलास-प्लेट के प्रयोग को नियंत्रण करने के लिए निर्माण व उत्पादन करने वालों की जवाबदेही तय करना होगा।

      जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में प्लास्टिक की थैलियों का पूर्णतः प्रतिबन्ध है किन्तु यह पूर्णतया प्रभावी नही है।
         ‘स्टार्ट अप इण्डिया’ के तहत वेस्ट मैनेंजमेन्ट रिसाइकिलिंग के लिए छोटे-छोटे उद्योग लगाये जाएँ। प्लास्टिक के कचरे से उर्जा उत्पन्न करने आदि उद्योग में निवेश किया जाएँ तथा वेस्ट प्लास्टिक से गमले, बाल्टी, खिलौने, सजावट का सामान आदि बनाया जाता है। साथ ही प्लास्टिक उपयोग की निर्भरता को कम करने का प्रयास किया जाये। हम यह कह सकते हैं कि चरणबद्ध तरीके से धीरे-धीरे उठाये जाने वाले यह प्रयास विश्व को प्लास्टिक से मुक्त करने में पूर्णतः सक्षम है। देश को प्लास्टिक प्रदुषण व पर्यावणीय क्षति से मुक्त करने के लिये जन-आन्दोलन व जन-सहभगिता की आवश्यकता है।

बाॅय-बाॅय प्लास्टिक, नो-नो प्लास्टिक


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Hi. I’m Madhu Parmarthi. I’m a free lance writer. I write blog articles in Hindi. I write on various contemporary social issues, current affairs, environmental issues, lifestyle etc. .

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