आर्थिक मन्दी की दस्तक व सरकार के प्रयास
देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि मांग व आपूर्ति के मूल सिद्धान्त पर निर्भर करती है। आर्थिक मन्दी का सीधा सम्बन्ध मांग आपूर्ति मे असन्तुलन से है। जब किसी वस्तु की मांग उसकी आपूर्ति की तुलना में अधिक होती है तब बजार में गति आती है तथा उछाल देखा जाता है। इसके विपरीत मांग कम और आपूर्ति ज्यादा होती है तो सुस्ती या मन्दी की स्थिती होती है। किसी भी अर्थव्यवस्था में लोगो को खरीदने के उत्साह की कमी को ही मंदी की दस्तक कहते हैं। आम जनता में धन की उपलब्धता कम होने के कारण निर्माताओं को ग्राहक नही मिलते जिससे उनका उद्योग धीमी गति से बढ़ता है, वे अपना उत्पादन कम कर देते हैं तथा उस उद्योग में लगे लोगो की छंटनी हो जाती है जिससेे बेरोजगारों की संख्या में बढ़ती है।
![]() |
आर्थिक मन्दी की दस्तक व सरकार के प्रयास |
वर्तमान समय में विश्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ो में भारतीय अर्थव्यवस्था फिसलकर सातवें पायदान पर पहुंच गयी है। अप्रैल जून 2019 में केन्द्रिय सांख्यकीय कार्यालय के जारी आंकड़ो में जीडीपी दर सकल घरेलु उत्पाद की वृद्धि दर 5.8 प्रतिशत रही है। पिछले वर्ष 6.8 प्रतिशत थी। इंटरनेशनल रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत की वर्ष 2019 की जीडीपी दर को 6ः8 से घटाकर 6ः2 कर दिया है।
2024 वर्ष तक 5 टिलियन डालर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए हमें विकास दर को 8 प्रतिशत ले आगे बढ़ाना होगा। किसी भी अर्थव्यवस्था में आर्थिक प्रगति को मापने का यह पैमाना है। जीडीपी दर की गणना प्रत्येक तिमाही की जाती है। जी0डी0पी0 को कैसे निकालते है इसका सिद्धान्त है।
GDP= C+ I+ G+X (E-M)
C=Consumer-expenditure, I=Industries-investment,
G=Government-investment, X=(export-import)
2024 वर्ष तक 5 टिलियन डालर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए हमें विकास दर को 8 प्रतिशत ले आगे बढ़ाना होगा। किसी भी अर्थव्यवस्था में आर्थिक प्रगति को मापने का यह पैमाना है। जीडीपी दर की गणना प्रत्येक तिमाही की जाती है। जी0डी0पी0 को कैसे निकालते है इसका सिद्धान्त है।
GDP= C+ I+ G+X (E-M)
C=Consumer-expenditure, I=Industries-investment,
G=Government-investment, X=(export-import)
इसके प्रमुख घटक कृषि क्षेत्र, उद्योग जगत, व सेवा क्षेत्र है। मुख्य रूप से चार प्रमुख चार प्रमुख क्षेत्रों से विकास दर निकालते है।
1 सकल घरेलु उत्पाद जिसमें हम और आप खर्च करते है।
2 सरकार द्वारा निमार्ण कार्यो जैसे पुल सड़कों भवनो का निर्माण कराया जाता है।
3 व्यक्ति उद्योग धन्धों में निवेश कर आय प्राप्त करता है।
4 आयात में से निर्यात को घटाकर आय प्राप्त की जाती है।
अर्थव्यवस्ता में मन्दी के कुछ प्रमुख लक्षण उत्पन्न होते है।
1 शेयर बाजार गिरने से लोगों में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
2 देश का उत्पादन घटने लगता है तथा कल कारखानों में ताले लगते है।
3 व्यक्ति के आय नहीं बढ़ती जिससे उनके क्रय शक्ति में कमी आती है।
4 नये उद्योगोे में निवेश का उत्साह नही रहता।
5 गरीबों की संख्या में वृद्धि होती है।
मन्दी के प्रकार
एक संरचनात्मक मंदी होती जिसका प्रभाव करीब एक दशक तक देश में छायी रहती है। 1929-1930 की मंदी विश्व की संरचनात्मक मंदी जो लगभग प्रथम विश्व युद्ध के दौरान छायी रही, तथा उसके बाद अर्थव्यवस्था में वृद्धि हुयी।
दूसरी चक्रिय मंदी जिसका प्रभाव साल डेढ़ साल तक रहता है। जब किन्ही कारणों से कुछ समय के लिए कुछ क्षेत्रों में दिखायी पड़ता है तब उसे चक्रिय मंदी कहते है।
यह 1990-91 वर्ष में देखी गयी जब तत्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर आजाद की सरकार में सोना गिरवी रखा गया था। इसके पश्चात 2008 तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार मंदी आयी किन्तु भारत में इसका कोई प्रभाव पड़ा , जबकि विश्व के अन्य देश अमेरिका आदि में मंदी छायी जिसके कारण सिलिकान वैली बहुत प्रभावित हुयी।
यहां पर हम कुछ क्षेत्रों में मंदी का असर स्पष्ट परिलक्षित होता है।
1 आटोमोबाइल सेक्टर दर्ज की गयी जहां उत्पादको ने अपना उत्पादन कम किया तथा करीब 10 लाख
नौकरी कम हुई।
नौकरी कम हुई।
2 टेक्सटाइल उद्योग में ज्यादा नुकासान हुआ इस उद्योग से लगे लोग 80 हजार करोड़ का माल नही
खरीद पा रहेे। वस्त्र उद्योग व रेडीमेंड वस्त्रों पर नुकसान हुआ है।
खरीद पा रहेे। वस्त्र उद्योग व रेडीमेंड वस्त्रों पर नुकसान हुआ है।
3 एफ0एम0जी0सी0 क्षेत्र खाने-पीने की वस्तुओं के उद्योग में जहां पारले-जी बिस्किुट,
डाबर, पंतजली को अपना उत्पादन कम करना पड़ा।
डाबर, पंतजली को अपना उत्पादन कम करना पड़ा।
4 रियल स्टेट भवन निमार्ण में ज्यादा गिरावट देखी गयी।
5 बैकिंग सेक्टर आईटी सेक्टर में मंदी रही।
यहां पर वैश्विक मंदी के कुछ कारणों का उल्लेख करते है।
1 अमेरिका चीन में व्यापार युद्ध के कारण मंदी का प्रभाव देश में पड़ा है।
2 अमेरिका द्वारा ईरान पर प्रतिबन्ध लगाने के कारण कच्चे तेल का भाव बढ़ रहा है।
3 ब्रेक्जिट डील के कारण में उद्योग जगत में इसका प्रभाव पड़ा है।
4 1 डालर अमेरिकी की तुलना में रूपये का अवमूलयन 72 रूपये हुआ है।
5 कृषि के क्षेत्र मे सूखे व बाढ़ के कारण कृषि की विकास दर 1.7 के निचले स्तर पर है।
जबकि देश की अर्थव्यवस्था 70 प्रतिशत कृषि पर आधारित है, जहां पर 40 प्रतिशत लोग निर्भर है।
जबकि देश की अर्थव्यवस्था 70 प्रतिशत कृषि पर आधारित है, जहां पर 40 प्रतिशत लोग निर्भर है।
6 स्टार्ट अप इडिंया व स्टैण्ड अप इंडिया में मे ज्यादा निवेश नही हो पाया। निवेशकोे में उत्साह
की कमी से नये उद्योग धन्धे नही लग रहे।
7 सरकार का फिस्कल डिफिशिट 3 प्रतिशत रहा जो अच्छी बात है।
8 औद्योगिक विकास दर 3.6 प्रतिशत गिर रहीे है।
9 किसानो को दी जाने वाली सब्सिडी व आयुष्मान भारत आदि योजनाओ पर भी ज्यादा रूपयो का
खर्च बढ़ रहा है।
10 नोटबन्दी व जीएसटी उठाया गया एक सहारनीय कदम था लेकिन इसके क्रियान्यवयन मेें
कमी से बहुत अच्छा प्रभाव न पड़ सका।
11 जनसंख्या वृद्धि आटोमेशन के कारण भी नौकरी नही उत्पन्न हो रही।
सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था में गति देने के लिए वित्त मंत्री सीता रमण के मन्दी से उबरने के लिए महत्वपूर्ण कदम
1 एफ0डी0आई0 पर सरचार्ज 15 प्रतिशत कम किया।
2 बीएस6 मानक की गाड़ियो कों जगह बीएस4 मानक की गाड़ियों प्रयोग की जा सकती है।
3 रिजर्व बैंक ने रेपो रेट को कम कर दिया है जिससे बैंको द्वारा लोगो को इ0एम0आई में कमी
आयेगी। मंदी को कम करने के लिए केन्द्र सरकार 70 हजार करोड़ रूपया सरकारी बैंको को देगी।
4 आटो सेक्टर में नान बैकिग कम्पनियां अब बिना के0वाई0सी के लोन दे सकेगी
5 उद्योग पतियो को अपने लाभ से 2 प्रतिशत लोक कल्याण में खर्च करना पडता है किन्तु अगर
इसका उल्लंघन होता है तो सिविल केस होगा न कि क्रिमिनल।
6 आटो व कार उपभोक्तओं को नयी गाड़ियों के रजिस्टेशन फीस कम कर दी गयी है।
7 जीएसटी के स्लैब में बदलाव किया गया। तथा उसका रिफन्ड एक माह के अन्दर आ जाये
तथा जो भी खामियां हो उनकोे तत्काल दूर करने के लिए विशेषज्ञों द्वारा दूर करले का प्रयास
किया जायेगा।
8 हाउसिंग फाइनेन्स कंपनियों की कैश लिक्विडिटी 20 हजार करोड़ से बढ़ाकर
30 हजार करोड़
30 हजार करोड़
कर दी हैै।
7 बैंकरेप्टसी कानून से काले धन पर वार किया गया हैं जिससे काले धन पर कमी आयेगी।
नोट बन्दी के समय कारपोरेट जगत में 100 प्रतिशत रूपया चलन में था जो 150 प्रतिशत वापस आ गया है तब अर्थव्यवस्था में मुद्रा की कमी नही है। यहां पर एक पक्ष है कि व्यापारियों ने रूपयों को रोक कर रखा है तथा वे मन्दी की मार के कारण खर्च करना नही चाहते।
सरकार द्वारा उठाये गये कदम
5 साल के लिए जो 100 लाख करोड़ रूपये इनफ्रराटेक्चर के लिए रखे हैै। अर्थव्यवस्था के पिरामिड में जो लोग नीचे के पायदान पर उनको रूपया पहुंचाना है जिससे उनके हाथ में क्रय शक्ति आयेगी तथा एफजीसी के के सेक्टर में वृद्धि होगी। मनरेगा योजना के तहत 60 हजार करोड़ बढ़ाये जायें।
सरकार द्वारा भी देश की प्रगति के लिए कुछ प्रमुख योजनाओं में खर्च करने के लिए रखा है। जैसे साढ़े तीन लाख करोड़ जलजीवन अभियान के लिए रखे है, सवा लाख करोड़ फूड सिक्यिोरिटी के लिए है।
कृषि क्षेत्र में अर्थव्यावस्था को गति देने के लिये किसानो को दी जाने वाली खाद पर सब्सिडी, फसल बीमा योजना है व आयुष्मान भारत आदि योजनाओ पर लागु किया गया है।
हम यह कह सकते है कि सरकार अर्थव्यवस्था में गति देने के लिए हर तरह के संभव प्रयास कर रही है जिससे उद्योग-धन्धों में गति तथा लोगो में रोजगार के नये अवसर उपलब्ध हो, तथा स्र्टाट-अप इंडिया , व मेक इन इंडिया के लिए सरल सुविधाये प्रदान की जाये तथा विदेशी निवेश भारत में आये इसके लिए अच्छे माहौल उत्पन्न किया जाये। प्राथमिक रूप से मंदी यह निमार्ण व आटो सेक्टर में है तथा सेवा क्षेत्र में नही है।
पूर्व आर बी आई गर्वनर विमल जालान ने इसे चक्रिय मंदी कहा है तथा यह 4 से आठ महीने से कम हो जायेगी।
0 comments:
Post a Comment