तीन तलाक (नारी उत्पीड़न)
भारतीय संस्कृति अपनी विविधता में एकता के स्वरूप को समेटे हुए विविध धर्म जैसे हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, पारसी, जैन आदि व्यक्ति परस्पर सौहार्द से रहते हैं। व्यक्ति विशेष अपने धर्म की आजादी की पूर्ण स्वतंत्रता है, बशर्ते वह दूसरों की स्वतंत्रता में बाधक न बने। भारतीय संविधान में हर सम्प्रदाय में अपने धर्म के अनुसार अपनी मान्यताओं और परम्पराओं का स्वतः निवर्हन करता है। किन्तु मुस्लिम समाज में तीन तलाक की कुप्रथा से मुस्लिम नारी का शोषण होता है। संविधान में मिले समानता तथा स्वतंत्रता के उन्मूलन का यह भयावह पक्ष है।
(1) तलाक-उल-सुन्नत और
(2) तलाक-उल-बिद्दत।
तलाक-उल-सुन्नत लगभग 1400 वर्ष पुरानी परम्परा है। इस व्यवस्था में हजरत मुहम्मद ने तलाक का प्रावधान दिया है। इसमें नब्बे दिन की समय सीमा के अन्तर्गत तीन बार तलाक देने की प्रक्रिया को पूर्ण किया जाता है। तीन महीने की अवधि के बीच में अगर आपस में समझौता हो जाता है तो यह तलाक नहीं माना जाता है अन्यथा इस समय सीमा के बाद तलाक की औपचारिकता पूरी मानी जाती है। यह प्रक्रिया थोड़ी लचीली होती है। तलाक-उल-बिद्दत में शरियत कानून के अनुसार पति के द्वारा तीन बार तलाक देने पर यह तलाक हो जाता है। तीन बार तलाक के बाद अगर पति-पत्नी दुबारा साथ रहना चाहते हैं तो पत्नी को ‘हलाला’ की निक्रिष्ट प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। जिसके अनुसार पहले पत्नी को दूसरा निकाह करना होता है तब उसके शौहर से तलाक दिलवाकर दुबारा तलाक देकर पूर्व पति से विवाह करने की अनुमति है। वर्तमान में इस प्रथा का वीभत्स रूप सामने आया है। डाक, स्काइप, ई-मेल मैसेज, वाट्सअप आदि से तीन तलाक की समस्या को दुरूह बना दिया गया है।![]() |
तीन तलाक (नारी उत्पीड़न) |
तलाक के विरोध के मुख्य कारणों मेंः-
(1) पत्नी की सहमति न होना,
(2) पति की तानाशाही,
(3) समझौते का विकल्प न होना,
(4) दहेज प्रथा
(5) लैंगिक असमानता
(6) पत्नी के भरण-पोषण का अधिकार नहीं आदि मुख्य है।
तीन तलाक का प्रचलन अशिक्षित, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग में बहुतायत में फल-फूल रहा है। रूढ़िवादी मान्यताओं के कारण मौलवियों और काजियों द्वारा बनाये गये अनर्गल फतवों से मुस्लिम नारी दहशत के वातावरण में रह रही है। उसे अपनी आवाज उठाने का हक नहीं है। समाज में फैली विसंगतियों की ओर मौलानओं की नजर नहीं पड़ती तथा पुरानी सदी की मान्यताओं को अपनी तुगलकी फरमानों द्वारा 21वीं सदी में मुस्लिम समाज को पीछे ढ़केल रहे हैं। तीन तलाक के उत्पीड़न से नारी शोषित होती है। उसकी आर्थिक, मानसिक, सामाजिक आदि स्थिति निरन्तर शोचनीय हो रही है। उसका व उसके बच्चों का भविष्य अंधकार में दिखाई देता है।
‘मेरा हक फाउण्डेशन’ के द्वारा मुस्लिम महिलाओं के शोषण को समाप्त करने में मुख्य भूमिका निभाई है। सर्वें में नब्बे प्रतिशत मुस्लिम महिलाओं ने तीन तलाक को गलत बताया है। विश्व के 55 मुस्लिम देशों में 22 देशों में इस प्रथा को समाप्त कर दिया गया है। यहाँ तक कि पाकिस्तान और बंगलादेश आदि देशों में भी इस प्रथा पर पाबन्दी लगाई है।
’आल इण्डिया मुस्लिम पसर्नल बोर्ड’ ने शरियत कानून का उदाहरण देकर वे इसे अपने अधिकारों के छेड़़छाड़ का मामला मानते हैं। संविधान के अनुच्छेद 25 और 29 के अन्तर्गत उनके अधिकारों का हनन है। मुस्लिम विवाह के अनुच्छेद 39 के अन्तर्गत महिलाओं को भी तीन तलाक का प्रावधान है। परन्तु कम पढ़ी-लिखी महिला इस पर विचार नहीं कर पाती।
यहाँ पर वोट बैंक की राजनीति से इतर केवल कानूनी पक्ष पर ध्यान देना चाहिए-
(1) हमारे संविधान धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक है और इसमें महिलाओं को समानता का अधिकार है।
(2) धार्मिक आधार पर किसी महिला के अधिकार को कम नहीं किया जा सकता।
(3) नारी सशक्तिकरण और
(4) गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार।
सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानों के तीन तलाक के केस को संज्ञान में लिया। पाँच जजों की बेंच ने 22 अगस्त 2017 को तीन तलाक की प्रथा को अमान्य घोषित कर दिया तथा सरकार से कानून बनाने का निर्देश दिया गया। केन्द्र सरकार ने ‘मुस्लिम वीमेन प्रोटेक्शन इन मैरिज एक्ट 2017’ के तहत तलाक-उल-बिद्दत को अवैध घोषित कर दिया। तीन तलाक देने वाले को तीन वर्ष कारावास का दण्ड दिया। यह कानून लोकसभा में पास हो चुका है तथा राज्यसभा में यह लम्बित है।
तीन तलाक बिल
विपक्ष के विरोध के बाद भी यह तीन तलाक बिल 25जुलाई 2019 लोक सभा में केन्द्र सरकार ने पास करवाया था तथा 30 जुलाई को राज सभा में भी बहुमत से पास करवाया।
विधेयक के प्रावधान
यह संज्ञेय अपराध है, इसमें पुलिस सीधे गिरफ्तार कर सकती है, जब महिला खुद शिकायत करेगी।
खून या शादी के रिश्ते वाले सदस्यों के पास भी मुकदमा दर्ज करने का अधिकार होगा।
पड़ोसी या अनजान शख्स इस मामले से केस नही दर्ज कर सकता।
समझौते की शर्त
कानून में समझौते के विकल्प को भी रखा गया है, कि पत्नी की पहल पर ही समझौता हो सकता है, लेकिन मजिस्ट्रेट द्वारा उचित शर्तो पर।
जमानत के नियम मजिस्ट्रेट इसमें जमानत दे सकता है, लेकिन पत्नी का पक्ष सुनने के बाद ही।
गुजारे के लिए नियम
तीन तलाक पर बने कानून में छोटे बच्चों की कस्टडी मां को दिये जाने का प्रावधान है। बच्चों का भरण-पोषण का अधिकार मजिस्ट्रेट तय करेगे, जिसे पति को देना होगा।
मुस्लिम नारी के पक्ष में इस फैसले ने अल्पसंख्यक व बहुसंख्यक वर्ग ने स्वागत किया है। इस कानून बन जाने से मुस्लिम महिलाये नारी सशक्तिकरण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकेंगी। कानून मंत्री रवी शंकर प्रसाद ने कहा इसे राजनीतिक चश्में से न देख, यह नारी की गरिमा का सवाल है, इसे खुले से समर्थन करना चाहिये।
2 comments:
truely said 👍
Really nice thoughts
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