स्कूल बैग का बोझ व बच्चों के झुकते कन्धे

स्कूल बैग का बोझ व बच्चों के झुकते कन्धे


       आज के समाज में  पढ़े-लिखे माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के वचनबद्ध है जिससेे वे आगे चलकर जीवन मेें अच्छा मुकाम प्राप्त कर सके। अच्छी शिक्षा देने के लिए शहर के मंहगे प्राइवेट व पब्लिक स्कूलों व अन्य सरकारी स्कूलों में दाखिला करवा देते है। प्राइवेट स्कूल प्रशासन अपने बच्चों को आगे रखने के लिए छोटे-छोटे नर्सरी व केजी के बच्चों को भारी-भारी किताब के बोझ को डालकर अच्छी पढ़ाई देने के लिए मजबूर है। छोटी उम्र में पढ़ाई का बोझ बच्चो में पढ़ाई के प्रति अरूचि उत्पन्न करता है। 

बस्तें का बोझ
स्कूल बैग का बोझ व बच्चों के झुकते कन्धे
स्कूल बैग का बोझ व बच्चों के झुकते कन्धे

     छोटी  कक्षा का पाठयक्रम उनकी उम्र के लिहाज से ज्यादा रहता है तथा उनके बस्तें का बोझ को बढ़ा देता है। किताबों के साथ उनकी पानी बोतल व टिफिन  लेकर चलते हुए ऐसे प्रतीत होते  है जैसे कम उम्र मे पीठ पर बोझा लादने की ट्रेनिंग ले रहे है। वास्तव में छोटेे बच्चों को पढ़ाने के लिए उनकी उम्र का ख्याल न करके हुए बहुत सारे विषयों की पढ़ाई करने के लिए बाध्य करते है। यहां पर बच्चों को होमवर्क कराने के लिए लालच दी जाती है। धीरे-धीरे बच्चे भी अपनी जिद मनवाने केे लिए टीवी देखने या चाकलेट खाने की शर्त रख देते है।  यहां पर छोटे बच्चों के मन मस्तिष्क पर पड़ने वाले शारिरिक व मानसिक दबाव का अध्ययन करते है। कम उम्र में ज्यादा पढ़ने का दबाव बच्चों को खेलने-कूदने व अपने मन के अनुसार कार्य करने में बाधक है जिससे सहज बचपन छिन जाता  है।

पाठयक्रम की अधिकता 

         पाठयक्रम की अधिकता गृहकार्य करने की बाध्यता बार-बार टेस्ट लेकर नंबरो की गणित मेें उलझते मां-बाप घर में कफ्र्यु का माहौल बना देते है।  मां-बाप अपने बच्चों की परिक्षा के कारण बहुत सी सामाजिक गतिविधियों जैसे विवाह समारोह, पार्टी, पिकनिक व घूमने फिरने से कटने लगते है तथा नीरस माहौल में स्वंय व बच्चों को ढालने का प्रयास करते है।
 अब प्रश्न यह उठता है कि भारतीय शिक्षा पद्धति में परिवर्तन कर उनके बोझ को कम करना तथा उन्हें बेफिक्र खिखिलाता बचपन देने का प्रयास करना है।  
     हमलोग पाश्चात्य सभ्यता की नकल बहुत तीव्रता से करते है वहां का फैशन खान-पान व संस्कृति की नकल करते है किन्तु वहां पर दी जाने वाली स्कूली शिक्षा पर ध्यान नही देते है। वहां पर हर 10 बच्चे पर एक शिक्षक होता है तथा बच्चे टेबलेट,आइपैड लेकर जाते है। बस्ते को बोझ नही होता है। सारा होमवर्क कक्षा में करा दिया जाता हैं तथा स्कूल की छुट्टी में होमवर्क नही दिया जाता है। वहां पर टेस्ट लेकर यह भी देखा जाता है कि अगर वह बच्चा अन्य बच्चों की अपेक्षा ज्यादा तेज है तो उसे अलग से कक्षा लेकर पढाया जाता है।   इस तरह से शिक्षा देने  का एक पहलु यह भी है कि बच्चा किसी भी लिखी हुई वस्तु को ठीक से समझे व अपने शब्दो में लिख सके। वहां पर कक्षा में उनकी आयु  के  हिसाब से छोटी-छोटी पुस्तक पढ़ने को दी जाती है तथा उसको पढ़कर स्वयं प्रश्न उत्तर बनाना होता है। लेकिन वहां पर जैसे- जैसे बड़ी कक्षा में जाते है तब आठवी व नौवीं कक्षा में पाठ्क्रम बढ़ाया जाता है। हमारी शिक्षा पद्धति में केवल रटन्तु तोता बनाने का प्र्रयास किया जाता है। 

समय समय पर सरकार द्वारा बच्चों के बस्ते के बोझ को कम करने का प्रयास किया गया है। 
     किन्तु इस बात को स्कूल के शिक्षक ध्यान नही देते तथा सब प्राइवेट स्कूल के लोग  नंबर गेम में अपने स्कूल को आगे रखने के लिए 6, 7, 8 के पाठ्यक्रम को बहुत ज्यादा बढ़ा देते है। जिससे बच्चों को होमवर्क व कक्षा कार्य करने के अलावा समय ही नहीं मिल पाता। अब तो छोटे बच्चो को स्कूल के बात टयूशन भेजने का भी चलन  हो गया है कि  बच्चा सुनता नहीं है इसलिए टयुशन भेजते है। इसप्रकार से बच्चे मानसिक रूप से परिपक्व नही हो पाते तथा चितिंत व परेशान रहते है उनकी बालसुलभ गतिविधि प्रभावित होती है खेल-कूद में अरूचि हो जाती है तथा शारिरिक स्वास्थ्य भी खराब होता है।

चिल्डरन स्कूल ऐक्ट 2006 (Children school act 2006) में कहा गया है कि यह बस्ता बच्चो के बजन का 10 प्रतिशत से ज्यादा न हो।
 नवंबर  2016 में केन्द्र सरकार के मानवसंसाधन मंत्रालय ने दिशानिर्देश  दिया है कि केन्द्र शासित प्रदेश तथा राज्य सरकार कक्षा 1 से लेकर कक्षा 10 तक के बच्चो के बस्ता निर्धारित किया है। कक्षा 1-2   1.5(kg) किलो  कक्षा 3-5    3(kg) किलो,          कक्षा 6-7    4 (kg) किलो
कक्षा 8-9    4.5(kg)  किलो,      कक्षा 10    5(kg) किलों। 


एन सी आर टी (N CERT) के पूर्व निर्देशक ने  स्कूलो की प्रतिस्पर्धा के कारण बहुत से प्राइवेट पब्लिशर की किताबों से अपने पाठक्रम को रखते है। जिससे उन्हें ज्यादा कमीशन मिलता है तथा बस्तेे का बोझ भी बढ़ता है। 

  अभिभावकों ने जहां इसके बच्चों के बस्ते के भार के लिए चिंता जताई वहां  डाक्टरों ने बच्चों के पीठ भारी  बस्ता से उनके कंधे झुक रहे हैं तथा पीठ पर दर्द की शिकायत भी कर रहे हैं। 


 एसोशियेट चेम्बर आफ कामर्स  एंड इंडस्ट्री (Associate chamber of commerce and industry) के सर्वे में कहा गया है कि भारत के 68 प्रतिशत स्कूली बच्चों में कमर दर्द की शिकायत रहती है। बच्चें अपने वजन से 35 प्रतिशत ज्यादा बस्तें का भार उठातें  हैं। 8 से 15 साल के बच्चों को पीठ पर 3 किलो से ज्यादा भार नही उठना चाहिए।
इंसटिट्युट  आफ चाइल्ड हेल्थ केयर (Institute of child and health care) के डाक्टर का कहना है कि भारी भरकम बस्ता उनके कमर व गरदन के दर्द का कारण बनता है बड़े होते युवा दर्द के शिकार  होते है।

सरकार ने 30 अप्रैल 2018 को अभिभावकों व अन्य शिक्षकों से  सुझाव मागा गया था। मोटे तौर पर हम  कह सकते है कि निम्नलिखित बातो पर सरकार का ध्यान आकृष्ट कराना चाहिये।
(1 )बच्चों का पाठयक्रम  कम करे। (2) बच्चों मे रटने की जगह समझने की ज्ञान विकसित करे। 
(3) ऐसी व्यवस्था की जाये कि ज्यादा किताबे न ले जायी जाये।  (4) बच्चों में योगा खेल-कूद रचनात्मक कार्यों के द्वारा पढाने का प्रयास किया जायें।
बच्चों बस्ते के  बोझ को समझते हुए सीबीएसई  ने नयी पहल की है।  सीबीएसई स्कूलो को नये दिशा र्निदेश जारी किये गये है। 
 कक्षा 1-2 के बच्चों को होमवर्क न दिया जाये । तथा उन्हे भाषा व गणित ही पढ़ाया  
 जायें। 
 3 - 5 कक्षा को भाषा गणित और सामान्य विज्ञान ही पढा़या जायें।
  एन0सी0आर0टी के पाठयक्रम   से ही स्कूल में पढ़ाया जाये । 
 सीबीएससी ने नियम बना दिया है कि तीसरी से आठवीं कक्षा में  पढ़ाये जाने वाले विषय कम होगे तथा स्कूल   में पढ़ाई के घंटे कम होगेें। 

     स्ंक्षेप में हम कह सकते है नौनिहालो से बचपन न छीने इसके लिए  जागरूकता अभियान की तहत माता-पिता सामाजिक कार्य कार्ताओं व  बुद्धिजीवी वर्गो तथा सरकार को आगे आकर बच्चों को पाठयक्रम से बोझ को कम करने को प्रयास करना चाहिये । इतना सब होने के बाद व्यवहारिक स्थिति में बच्चों के स्कूल का बैग कम होता नजर नही आ रहा है।
मणिपुर  सरकार ने बच्चों के बस्ते के बोझ को कम करने के लिए प्रयास किए है। शनिवार के दिन बिना स्कूल के बस्ते के बच्चों को स्कूल आना है। उस दिन रचनात्मक कार्य खेलकूद या पर्यावरण से सम्बन्धित  कार्य सिखाये जाते है। 

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Hi. I’m Madhu Parmarthi. I’m a free lance writer. I write blog articles in Hindi. I write on various contemporary social issues, current affairs, environmental issues, lifestyle etc. .

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3 comments:

Archita Srivastava said...

Well said 👍

Unknown said...

Very nice di👌👌👌

Anonymous said...

The main aim of the education should be learning not leaning...very nicely explained and presented the real picture of our education system..