शिक्षित बेरोजगारी: एक ज्वलन्त समस्या

शिक्षित बेरोजगारी: एक ज्वलन्त समस्या


भारतीय अर्थव्यवस्था की जी0डी0पी0 7.7ः की दर से बढ़ रही है, जिसने कि विकसित देशों की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ दिया है। यहाँ तक की चीन की जी0डी0पी0 दर भी 6.2ः है। किन्तु देश की विडम्बना यह है कि शिक्षित बेरोजगारों की संख्या बेतहाशा बढ़ रही है। एन0एस0एस0ओ0 के सर्वे के अनुसार देश की 65ः जनसंख्या 35 वर्ष की आयु से कम है। बेरोजगारी का शाब्दिक अर्थ कार्य के इच्छुक व्यक्ति को कार्य का अवसर न मिलना है। इन्टरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन के अनुसार भारत में एक करोड़ अस्सी लाख लोग बेरोजगार है। सी0एम0आई0ई0 के अनुसार भारत में 5.7ः लोग बेरोजगार है। 

शिक्षित बेरोजगारी: एक ज्वलन्त समस्या
यहाँ पर हम बेरोजगारी के उत्पन्न होने वाले कारणों पर ध्यान दिलाना चाहते हैं। देश के लगभग एक करोड़ स्नातक उच्च शिक्षा प्राप्त युवा है। प्रतिवर्ष पचास लाख स्नातक शिक्षा लेकर निकलते हैं। जनसंख्या की वृद्धि दर दो प्रतिशत है तथा दो या तीन लाख रोजगार ही प्रति वर्ष उत्पन्न हो पाते हैं। यहाँ पर हम समस्या के मूल कारणों का अध्ययन करते हैं- 


(1) बढ़ती जनसंख्या, 
(2) कृषि की दयनीय स्थिति,
(3) दोषपूर्ण शिक्षा व्यवस्था,
(4) कुटीर व लघु उद्योग धन्धों का अभाव,
(5) बड़े उद्योगों को विकसित न होना।


सरकार के लिए जनसंख्या के अनुरूप सरकारी संस्थानों को रोजगार देना असम्भव प्रतीत होता है। देश की सभी सरकारी तथा अर्द्ध-सरकारी संस्थाओं में खाली पड़े पदों को भरने की दोषपूर्ण पद्धति के कारण साल-दर-साल बेरोजगारी का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। यहाँ की शिक्षा ब्रिटिशकालीन शिक्षा पर आधारित है जहाँ पर प्रशासनिक कार्य के लिए बाबू उत्पन्न करने पर आधारित है। बिना तकनीकी ज्ञान के स्नातक और परास्नातक डिग्री प्राप्त करने वाले युवा योग्यता के मापदण्ड पर शून्य है। इतनी लचर शिक्षा व्यवस्था का बाजारीकरण एवं निजी विश्वविद्यालयों व विद्यालयों में शिक्षा का निम्न स्तर शिक्षकों की योग्यता का समुचित मापदण्ड न होने से ये छात्र किसी भी प्रतिष्ठान में कार्य नहीं प्राप्त कर सकते हैं। सरकारी नौकरियों का मोह भी युवाओं को मजबूर करता है। हाँलाकि इस खेल में निजी विद्यालयों और कोचिंग सेन्टरों का बाजार फल-फूल रहा है। हमें यहाँ पर कुछ मूलभूत प्रभावशाली कदम उठाने चाहिए-

(1) जनसंख्या के नियंत्रण के लिए चीन की ‘एक संतान नीति’ अपनानी चाहिए,

(2) सर्व-सुलभ शिक्षा को बढ़ावा देते हुए दसवीं एवं बारहवीं के विद्यार्थियों को रोजगारपरक तकनीकी पाठ्यक्रम     शामिल करना चाहिए तथा रोजगारपरक शिक्षा व्यवस्था देनी वाहिए जिसमें छोटी उम्र में ही स्वरोजगार उत्पन्न हो

(3) माता-पिता को बच्चों की योग्यता और उनकी रूचि के अनुसार पढ़ाई का चयन करना चाहिए। छात्रों को रचनात्मक कार्यों की ओर प्रेरित करते हुए स्वरोजगार डालने की प्रेरणा देनी चाहिए,

(4) अति पिछड़े और पिछड़े प्रदेशों में उद्योग-धन्धों को लगाकर रोजगार मुहैया कराने की कोशिश करनी चाहिए।
सरकार द्वारा चलाई गई योजनाएँ जैसे स्किल इण्डिया, स्टार्ट अप इण्डिया, मेंकिग इण्डिया, मुद्रा योजना, डिजिटल इण्डिया योजनाओं को लाभ उठाते हुए युवाओं को आगे बढ़ना चाहिए। युवाओं को सरकारी नौकरी का मोह त्याग कर केवल स्वयं तथा अन्य लोगांे को रोजगार देने में समर्थ होना चाहिए।

इन योजनाओं के क्रियान्वयन में जागरूकता की कमी है तथा सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार इन योजनाओं को जमीनी हकीकत के उतारते में पूर्णतया समर्थ नहीं है। इसके लिए योग्य, ईमानदार व कर्मठ युवाओं की क्षमता ही इन्हें जमीनी हकीकत के उतारने में समर्थ है। इस समस्या के समाधान के लिए सरकार, पक्ष-विपक्ष के नेता, बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, बड़े-बड़े उद्योगपतियों को मिलकर एकजुट होकर संयुक्त प्रयास करना चाहिए। अन्त में यदि बड़ी-बड़ी अलंकृत डिग्रियों से युक्त युवा अगर रोजगार पाने में असमर्थ हैं तो यह किसी भी देश के लिए बड़े शर्म की बात है। 

SHARE

Hi. I’m Madhu Parmarthi. I’m a free lance writer. I write blog articles in Hindi. I write on various contemporary social issues, current affairs, environmental issues, lifestyle etc. .

    Blogger Comment
    Facebook Comment