अभिव्यक्ति की आजादी बनाम लोकतंत्र की हत्या

 अभिव्यक्ति की आजादी बनाम लोकतंत्र की हत्या

 अभिव्यक्ति की आजादी का शाब्दिक अर्थ कि व्यक्ति अपने विचारो को लिखित, शाब्दिक, मौखिक, सांकेतिक या अन्य माध्यमों से अपने विचारो को साझा कर सकते है।  1689 वर्ष में इंगलैड में संवैधानिक अधिकार के रूप में अभिव्यक्ति की आजादी को अपनाया गया जो अभी भी प्रभाव में है। वर्ष 1789  में फ्रांस क्रान्ती ने मनुष्य व नागरिको के अधिकार की घोषणा के रूप में अपनाया गया था। 

1948 वर्ष में मानवाधिकार की घोषणा की गयी थी। इसके अन्र्तगत अभिव्यक्ति की आजादी को  अंतरराष्ट्रिय व क्षेत्रिय व मानवाधिकार कानून के हिस्सा बन गये। 

अभिव्यक्ति की आजादी बनाम लोकतंत्र की हत्या
 
                             अभिव्यक्ति की आजादी बनाम लोकतंत्र की हत्या

 अभिव्यक्ति की आजादी एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के अधिकार पर माना जाता है। लोकतंत्र में देश की सरकार चुनने के साथ-साथ अपने लोगो को विभिन्न अधिकार देती है। लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा कर सकते है। जैसे बराबरी का अधिकार, धर्म के अधिकार की स्वतंत्रता, शोषण के खिलाफ अधिकार, गोपनीयता का अधिकार

आज समाज में आम व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति की आजादी के लिए प्रखर वक्ता है। इसका अभिप्राय यह है कि हम कब क्या  कैसे और क्यों बोले की स्वतंत्रता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के अन्र्तगत अभिव्यक्ति की आजादी की स्वतंत्रता है।  यह हमारी मौलिक अधिकार के अन्र्तगत आता है।

1 विचारो को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता

2 बिना हथियार या गोलाबारूद के शान्ती से इकठ्ठे होने की स्वतंत्रता

3 समूहों यूनियनो व संघो के लिए स्वतंत्रता

4 स्वतंत्र देश के किसी भी हिस्से में बसने की स्वतंत्रता

5 किसी भी पेशे में अभ्यास करने की स्वतंत्रता किसी भी व्यापार या उद्योग-धन्धे में   शामिल होने की स्वतंत्रता     बशतें गैर कानूनी न हो।  

  यह आजादी हमारे जीवन के सामाजिक धार्मिक राजनीतिक व व्यवहारिक पहलु पर परिलक्षित होती है। विचारो को प्रकट करने का अधिकार देता है किन्तु इसकी कुछ सीमायें है। अभिव्यक्ति की आजादी बोलने की स्वतंत्रता मौन रहना, विरोध  करने के लिए पुतला जलाना, झंडा फहराना आर टी आई से पूछने की स्वतंत्रता मीडिया की स्वतंत्रता व किसी को ठेस न पहुंचाना जब व्यक्ति कार्यपालिका, न्यायपालिका, सर्वोच्च न्यायालय व नौकरशाही की आलोचना करता है तब यह अभिव्यक्ति की आजादी है। 

यदि आपके विचार से भारत की अखंडता, सुरक्षा, विदेशो से सम्बन्धों में ठेस पहुंचती है तब उसे रोका जाता है। यदि यह अभिव्यक्ति  की आजादी शान्ती व्यवस्था को पार करती है तब उस कृत्य को देशद्रोह की श्रेणी में रखा जाता है। 

कमजोर पक्ष

  किन्तु कभी-कभी लोग अपने निजी स्वार्थो या किसी विचार धारा से लोगो को गुमराह करने का प्रयास करते है।   डिजिटिलाजेशन के युग में इंटरनेट द्वारा सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर देश विरोधी ताकतो को फन उठाने का मौका मिल जाता है। 

धार्मिक उन्माद व हिंसक आन्दोलन समाधान से ज्यादा समस्या का इजाफा करते देखे गये है। दिल्ली में भड़की हिसा, सी एए कानून का विरोध नेताओ के भड़काउ बयान आदि है।

राजनीतिक लोग अपनी सियासी फायदे के लिए  अपने विरोधियो पर अर्नगल प्रलाप करते हैं एक दूसरे पर विष वमन करते है, भाषा की मर्यादा को ताक पर रख देते है तब यह भी आजादी देश के लिए घातक है। 

भाषा की मर्यादा व संस्कारो की सीमा का उल्लंघन भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नही दी जानी चाहिए। 

अगर आप एकदूसरे के प्रति असम्मानजनक शब्दो व असंसदीय भाषा का प्रयोग करते है। इसको भी आजादी में शामिल नही किया जाना चाहिए। 

यह तो एक झीना सा आवरण है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने कुत्सित विचारो को अभिव्यक्त करने का पुरजोर वकालत करता है।  यदि उसके विचारो का विरोध होता है तो उसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया जाता है। 

इसका ताजा उदाहरण 26 जरवरी लाल किले पर हुयी हिंसा से देश लहुलुहान हुआ।  किसान आन्दोलन का सहारा लेकर भारत को अन्र्तराष्ट्रीय रूप से बदनाम करने के लिए विदेशों में टूलकिट के द्वारा दंगा भड़काने का प्रयास किया गया। यह अभिव्यक्ति की आजादी का विभत्स रूप देखा गया है। 

विश्व के देशो में अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार है जैसे दक्षिण कोरिया अफ्रीका सूडान जापान पाकिस्तान ट्यूनिशिया,हांगकांग, ईरान, इजराइल, मलेशिया, फिलिपीन्स, साउदी अरब , थाईलैंड, न्यूजीलैंड , योरोप, डेनमार्क ,  चीन आदि है।

लेकिन उत्तर कोरिया, सीरिया, क्यूबा, बेलारूस, बर्मा,लीबिया व ईराक में अपने देश के लोगो को अभिव्यक्ति की आजादी नही देते हैै।

हमारे देश के बुद्विजीवियो को संविधान में दिए गये अधिकारो की भावना की दूषित होने से बचाने का प्रयास करना चाहिए। अगर कोइ इसका विरोध करता है तब हम इसे लोकतंत्र की हत्या कहते है।

केन्द्र सरकार ने सोशल मीडिया, ओ0टी0टी0 और डिजिटल मीडिया के दुरूपयोग को रोकने के लिए इसे कानून के दायरे में लाने का दिशानिर्देश जारी किया है। केन्द्रिय मंत्री श्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा है कि इसके तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बरकरार रखते हुए जवाबदेही तय की जायेगी। अफवाह फैलाने का कोई अधिकार नहीं है इस पर लगाम लगाना होगा। 

निष्कर्ष यह है अभिव्यक्ति की आजादी की सार्थकता तभी होगी  कि प्रत्येक देश अपने नागरिको को समाज मेे सकारात्मक परिवर्तन लाने मदद कर सके।


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Hi. I’m Madhu Parmarthi. I’m a free lance writer. I write blog articles in Hindi. I write on various contemporary social issues, current affairs, environmental issues, lifestyle etc. .

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2 comments:

Anonymous said...

Nice written

Anonymous said...

बहुत अच्छा लिखा है ��