डिप्रेशन एक चिन्तन समस्या व समाधान
यह एक मानसिक समस्या जो हर आयु वर्ग के स्त्री पुरूष युुवाओ को अपनी गिरफत में लेती है यहां तक की बच्चे भी इस अवस्था से अछूते नही है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाजेशन ने रिर्पोट में 2015 के अनुसार भारत में करीब पांच करोड़ लोग मानसिक रोगी हैै। करीब 3 करोड़ 80 लाख लोग चिन्ता व घबड़ाहट के शिकार हैं नेशनल इन्सटीट्यूट के मेंटल हेल्थ एण्ड न्यूरो साइन्स के अनुसार भारत में हर 20 मेें से एक व्यक्ति मनोरोग का शिकार है। पूरी दुनिया में करीब 78 प्रतिशत आत्महत्यायें होती है जिसमें 50 प्रतिशत भारत व चीन में होती है। इस बीमारी के मद्देनजर विश्व स्वास्थ्य संगठन 7 अप्रैल को मनाया जाने वाले विश्व स्वास्थ्य दिवस की का विषय अवसाद था।
![]() |
डिप्रेशन एक चिन्तन समस्या व समाधान |
साधारण बोल-चाल की भाषा में डिप्रेशन एक मानसिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति उदासीन हो जाता है, तथा स्वयं से दुखी अनुभव करता है। कुछ समय के बाद वह अपने आसपास के वातावरण से कोइ सरोकार नहीं रखता है। हांलाकि यह स्थिति किसी भी व्यक्ति के जीवन में किसी वस्तु या लक्ष्य के प्राप्त करने की इच्छा के होते हुए तथा बहुत प्रयास के बाद भी नहीं प्राप्त कर पाता तब व्यक्ति दुखी अनुभव करता है। वह यह सोचता है कि मेरा अब इस दुनिया से मोह भंग हो गया है। यह स्थिति भी समय बीतने के साथ कम हो जाती है तथा व्यक्ति पुनः सामान्य जीवन जीने लगता है। अपने लक्ष्य को दोबारा प्राप्त करने के लिए प्रयास करना है अथवा अपना लक्ष्य परिवर्तित कर दूसरी ओर केन्द्रित करता है।
यद्यपि डिप्रेशन एक गंभीर मनोरोग है। यह एक मानसिक स्थिति है जो चिकित्सक द्वारा दवा व कांउसलिंग से ठीक हो जाती है। जब यह अधिक स्तर पर उग्र होने पर व्यक्ति अपने व्यवहार को नियंत्रित नही कर पाता मार-पीट तोड़-फोड करना अथवा स्वंय को ही नुकसान करने का प्रयास करता है। इस तरह के व्यवहार को चिकित्सक की देखरेख में कुछ दवाइयों के साथ तथा व्यक्ति की कांउनसलिग करके ठीक किया जाता है। यह चिकित्सकीय जांच का विषय है । डिप्रेशन को मेडिकल की भाषा में एक मनोरोग कहा जाता है जिसमें कई प्रकार के अवसाद के लक्षण पाये जाते है।
Bipolar disorder
Psychosomatic disorder
Obsessive compulsion disorder Emile Durkheim इमाइलदुर्खीम ने समाज के 2600 लोगो पर सर्वे किया उसमे कहा गया की 20 से 25 प्रतिशत लोगो में आत्म हत्या का भाव आ सकता है। सोसाइड शब्द फेंच शब्द सोइ से बना है जिसका अर्थ स्वयं होता है तथा साइड अर्थात खतम करना है।
डिप्रेशन का व्यवहारिक व मनोवैज्ञानिक पक्ष
डिप्रेशन एक प्रकार से उत्तेजना की स्थिती है जिसमें व्यक्ति का मूड बार-बार बदलता है। कभी वह व्यक्ति स्वयं से बहुत खुशी का अनुभव करता है कभी वह स्वयं से बहुत दुख का अनुभव करता हैै। हांलाकि यह स्थिति दो या तीन सप्ताह से ज्यादा रहता है तब व्यक्ति में नकारात्मक सोच हावी हो जाती है तब व्यक्ति अवसाद के घेरे में आ जाता हैै।इसे बहुत हल्के में नहीं लेना चाहिए।
अब हम यहां पर व्यवहारिक व मनोवैज्ञानिक मानसिक स्थिति का जिक्र करते हैं। व्यक्ति सामान्य स्थिती में तो रहता है किंतु लक्ष्य न प्रात्त होने से उदासीन हो जाता है। माता-पिता व भाई-बहन से झगड़ा करता है गुस्सा करता है तथा स्वयं को कमतर अयोग्य समझने लगता है। इस तरह की स्थिती माता-पिता अपने बच्चों में अकसर देखते है जब किसीपरीक्षा को पास नही कर पाता तो व्यक्ति मानसिक उदासीनता का शिकार हो जाता है।जब बच्चा गुमसुम रहने लगे किसी कार्य में मन न लगे तब माता-पिता को इस ओर ध्यान देना चाहिए। आज के समय में छात्रो को अपनी रूचि के विषयों में श्रेष्ठता प्राप्त करने पर जोर देना चाहिए।
भौतिक युग में पैसे की चाहत व अधिक से अधिक धन कमाने की भूख ही समाज को एक ऐसे दोराहे पार लाकर खड़ा करती कि वह समान्य जीवन जीने के काबिल भी नही रहता।
किसी एक क्षेत्र की असफलता उसकी योग्यता को कम नहीं कर सकती किन्तु उसके द्वारा उठाया गया एक गलत कदम बच्चे के लिए भारी पड़ सकता है।
बात-बात पर गुस्सा करना चिड़चिड़ा रहना, हताश व असहाय महसूस करना, उसे अपने जीवन का उद्धेश्य न पता चल रहा अपनी रूचि की वस्तुओ पर ध्यान हटा देना, तथा अपने पास-पड़ोस व परिवार से दूरी बना लेना अर्थात एकान्तवासी होना जीवन व्यर्थ लगना।
कभी हारमोनल असन्तुलन से भी ऐसा देखा गया है। हर समय नाकारात्मक विचार हावी रहते है। हर समय ग्लानी का अनुभव करते है बारबार स्यवं को कसूरवार समझते है। शारिरिक थकान भूख की कमी वनज का कम होना या अत्यधिक बढ़ना, नींद न आना स्वयं को नुकसान पहंचाना आदि है।
डिप्रेशन के कारण
बच्चों को जब स्कूल में किसी बात को लेकर चिढाया जाता है कभी उसकी शारीरिक कमी, या कम अंक प्राप्त करने पर या आर्थिक परिस्थिति ठीक न होन पर बार बार मजाक उड़ाया जाता है तब वह बच्चा अवसार से घिर जाता है।
किसी नजदीकी व्यक्ति के मृत्यु होने से , सम्बध टूटने से , शारिरिक अस्वस्थता के कारण या माता-पिता के दबाव के कारण लोगो से मिलना जुलना कम कर देता है।
अवसाद से लड़ने मेे मदद करने वाले सूत्र
जब हम खुश रहते है तब सेरिटोनिन हारमोन्स व डोपामाइन का स्राव होता हैै तब व्यक्ति खुशी का अनुभव करता हैै इसलिए हमें हर स्थिति में खुश रहने का प्रयास कराना चाहिए।
योग ध्यान व व्यायाम प्रातः टहलने को अपनी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बनाये। शारीरिक श्रम करे। आठ घन्टे नींद व संतुनित खान-पान से अपने जीवन को व्यवस्थित करे।
जो चीजें अपको को हताश करती हैं तो उससे ठीक से लड़े तो जीतना संभव है।आप अपने लोगो को प्यार करे व उनसे अपने विचार सा़झा करे। वे माता-पिता भाई-बहन या दोस्त हो सकते है।
अपनी भावनाओ को व्यक्त करे तथा आपके मन मे क्या चल रहा है या आप क्या चाहते है उसे खुलकर बताये। कभी अपनी भावानाओ को दबाये नही व अगर कोइ चीज नागवार लगती है तो खुलकर बात करे। दूसरो को अपने उपर हावी न होने दे।
नकारात्मक सोच से दूर रहें। कम से कम नयी शिक्षा नीति बच्चो को नम्बर की दौड़ व सरकारी नौकरी की ओर भागने की जद्दोजहद को रोकने का प्रयास कर कौशल विकास को बढ़ावा देकर स्वरोजगार की ओर प्रेरित करेगी।
अनावश्यक प्रतिस्पर्धा न करे खेल की भावना का आदर करे। कभी किसी प्रतियोगिता में मिली हार को स्वीकार करे। हर लड़ाई आप जीत नही सकते।
शारीरिक परिश्रम करे कुछ दूसरो के लिए करे तथा अपनी अवकाश के समय अपनी रूचि को अपनाये ।ईश्वर है या नही यह तो साबित नही कर सकते कोई इसके पक्ष व विपक्ष के अनेको तर्क है किन्तु कुछ तो विश्वास रखे की उपर वाला जो करेगा वह अच्छा ही होगा, या फिर जो हमने कर्म किया है कल अच्छा होगा ऐसा दृढ़ विश्वास रखे। अपनी सफलता पर उसको धन्यवाद दें।
0 comments:
Post a Comment