जलवायु परिवर्तन वैश्विक समस्या व समाधान
प्रकृति प्रदत्त अनमोल धरोहरों के कारण मानव जीवन आस्तित्व में आया है। मानव शरीर पांच प्रमुख तत्वो से मिलकर बना है जैसे अग्नि, जल, वायु, आकाश, यह पंचभूत तत्व कहलाते है। इनके सामंजस्य के साथ ही प्रकृति में वैभव रहता है। प्राकृतिक संपदाओं का मानव जीवन में महत्वपूर्ण आधार है। किन्तु 21वीं सदी में आगे बढ़ते हुए प्रकृति प्रदत्त संपदाओं का दोहन नये तकनीकी ज्ञान का उपयोग कर वन संपदाओ को काटकर नवीन गगनचुबी इमारतों की र्निमाण कर, जल को एकत्रित कर बांध बना कर बिजली उत्पन्न कर रहेे है, उद्योग धन्धों से निकलने वाले दूषित जल का नदि-नालों में बहाकर जल प्रदूषित कर रहे है। कल-कारखानों से से निकलने वाले धुएं से वायु व आकाश तत्व को को प्रदूषित कर रहे हैं, जंगलों में लगी आग से प्राकृतिक सम्पदाओं की क्षति हो रही है।इस प्रकार के प्रदूषण ने विश्व स्तर पर कार्बन उत्र्सजन को बल दिया जिससे पृथ्वी के तापमान में उत्रोत्तर वृद्धि दर्ज की जा रही है, जलवायु परिर्वतन का मुख्य कारण हैै।
- जो परिवर्तन अल्पकालीन समय के लिए होते है उन्हे मौसम के परिवर्तन के तौर पर देखा जाता है मौसम के परिवर्तन के रूप में देखा जाता है।
- लेकिन जलवायु परिवर्तन दीर्घकालीन होते है जिसका प्रभाव लम्बें समय तक प्रभाव रहता है उसे जलवायु परिवर्तन के अन्र्तगत शामिल किया जाता हैै।
जलवायु परिर्वतन कारण मौसम में असन्तुलन
जब पृथ्वी का तापमान बढ़ता है जिसके फलस्वरूप कहीं-कहीं पर अत्यधिक वर्षा के कारण बाढ़ आने का खतरा, कहीं वर्षा न होने कारण सूखा पड़ता है, कहीं शीत-लहर कहीं ताप-लहर, जिससे मानव व पशु-पक्षी व पेड़-पौधों फसलों के आस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। जैसे उत्तर पूर्व आसाम मेघालय में बारिश बहुत कम होती है या बहुत ज्यादा होती है। सूखा, भूजल संकट व जंगल में आग। कहीे सुनामी, भूकंप व तूफान का खतरा रहता है।
जिससे फसलों पर बुरा प्रभाव पड़ता है क्योकि भारत एक कृषि प्रधान देश है जिससे मंहगाई बढ़ती है। कृषि उत्पादकता भी प्रभावित होती है, तथा मानवीय स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है।
अत्यधिक गर्मी के कारण झीले तालाब सूख रहे हैं तथा कुछ वर्षाें में स्वच्छ जल का संकट उत्पन्न हो जायेगा है। अत्यधिक गर्मी में भी डेंगु व मलेरिया की बिमारियां उत्पन्न होती है। एसी व फिज से निकलने वाली गर्म हवाओं भी वहां के तापमान को बढ़ाने में सहायक है। व तूफान का खतरा रहता है। अत्यधिक ताप के बढ़ने हिमालय पर ग्लेशियर के पिघलने नदियों के जल-स्तर में निरन्तर वृद्धि देखी जाती है। तापमान के बढ़ने से अंर्टाटिका व आर्टिक में बर्फ के पिघलने से समुद्र का जलस्तर बढ़ जायेगा जिससे तटीय क्षेत्रों के जलमग्न होने का खतरा रहता है। समुद्र के जल के अम्लीय होने कारण समुद्री जीव जन्तुओ पर विलुप्त होने का खतरा रहता है।
पृथ्वी के तापमान में वृद्धि के कारण
वर्तमान समय में पिछले पृथ्वी का औसत तापमान लगभग 14 से 15 डिग्री सेल्शियस अनुमानित है लेकिन इसके तापमान में 1.5 से ज्यादा की वृद्वि दर्ज हो रही है कहीं पर यह 2 से 3 डिग्री सेल्शियस से ज्यादा भी हो सकता है।
पृथ्वी के वायुमण्डल निम्न प्रकार की गैसे पायी जाती है-नाइट्रोजन-78 प्रतिशत, आक्सीजन-21 प्रतिशत, कार्बन-डाइआक्साइड,-0.03 प्रतिशत व अन्य गैसे 0.97 प्रतिशत आदि।
नाइट्रोजन व आक्सीजन पर्यावरण के लिए लाभदायक गैसे है। किन्तु कार्बन-डाइआक्साइड, मिथेन, सल्फर-डाइआक्साइड, ओजोन, जलवाष्प क्लारो-फ्लोरो-कार्बन, हाइड्रोफ्लोरो कार्बन आदि ग्रीन हाउस गैस कहलाती हैं। जब वायुमंडल में सूर्य की किरणें टकराती है तब कुछ अवशोषित हो जाती हैं तथा कुछ पृथ्वी से बाहर आकाश में चली जाती हैं जो पृथ्वी के वातावरण को गर्म रखने में सहायक है। जब वायुमण्डल ग्रीनहाउस गैस का आवश्यकता से ज्यादा अवशोषण हो जाता है तथा हानिकारक गैस पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर नहीं जा पाती है तो पृथ्वी का तापमान उतरोत्तर वृद्वि दर्ज की जाती है, ग्रीन हाउस इफैक्ट कहलाता है।
पिछले 10 दशक से तापमान में वृद्धि के कुछ प्रमुख कारण है।
- ग्लोबन वार्मिग
- शहरीकरण अर्थात लोगो का गांवो से शहरो की ओर पलायन
- जनसंख्या का विस्फोट
- जंगलो को काटना
- कृषि भूमि पर उद्योग धन्धो का लगना
- सारे शहर अर्बन हीट आइलैण्ड मं तब्दील हो रहे है। चारो कांक्रीट का जंगल बन रहा है।
जलवायु परिवर्तन के कम करने के लिए उठाये गये कदम
ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन को रोका जाये। रसायनिक कचरों को पुन उपयोग में लाया जायें वनो की कटाई कम की जाये वन संरक्षण पर जोर दिया जायें अक्षय उर्जा व नवीनीकरण उर्जा पर तेजी लायी जायें पवन उर्जा व सोलरउर्जा को प्रयोग किया जाये।
वैश्विक स्तर पर्यावण सन्तुलन के लिए पर उठाये गये कदमों का उल्लेख करते है।
1972 में स्टाकहोम में पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया गया था जिसमे पर्यावरण संरक्षण पर जोर दिया गया था।
2 जून 1992 में यू0एन0एफ0सी0 रियो पृथ्वी सम्मेलन ब्राजील में आयोजित किया गया जिससे विश्व स्तर पर ताममान को नियत्रिंत करने का ग्लोबल वार्मिंग से सम्बन्ध में काॅप का गठन का मुद्दा उठाया गया था।
1997 में क्योटो प्रोटोकाल जपान में हुआ था जिसमें बड़े विकसित देश इस बात पर जोर दे रहे है कि कर्बन उत्र्सजन को कम करने का प्रयास किया जाये। कार्बन बचाने व कार्बन बेचने की योजना जिसे कार्बन ट्रेडिंग कहते है के लिये प्रयोग किया जाये किन्तु योजना यह अपने लक्ष्य तक नहीं पहँच सकी।
2015 में पेरिस जलवायु सम्मेलन पेरिस सम्मेलन जिसे काॅप 21 कानफ्रेन्स आफ पार्टीस जिसमें सोवियत राष्ट्र की अगुवाई में आई0पी0सी0सी0 का रिपोर्ट में ग्लोबल वार्मिग को लेकर चिन्ता व्यक्त की गई थीं। सभी सदस्य 177 देशों से कहा गया था कि वे अपने देश कार्बन उत्र्सजन पर लगाम लगायें।
ग्रीन क्लाइमेट फन्ड बनाया जाये जिसके अन्र्तगत 62 मिलियन की राशी प्रदान की गई तथा विकसित देशों का 100मिलियन डालर की राशी अविकसित व विकासशील देशों को 2020 तक मुहैया कराई जाये जिससे ये देश तकनीकी ज्ञान के साथ अपने देशो के कार्बन उत्र्सजन को कम कर सके। इस राशी के द्वारा विभिन्न विकासशील देशों में 19 प्रोजक्ट लगाये जाने की योजना है जिसमें इंडोनेशिया का जियो- थर्मल-पावर-प्रोजक्ट व भारत के तटीय क्षेत्रों के भी प्रोजेक्ट शामिल है। किन्तु 100 मिलियन डालर की राशी बहुत कम है इसके लिए तो 4.4 ट्रिलयन डालर भी कम है।
पृथ्वी के तापमान से 2 डिग्री ज्यादा न बढ़ने दिया जाये। इसमें पृथ्वी के तापमान को 1.5डिग्री सेल्शियस तक रखा जाये। 2030 तक विश्व के तापमान रखने का लक्ष्य र्निधारित किया जाये।
किन्तु अमेरिका ने पेरिस सम्मेलन से अपने को अलग कर लिया,जिसके कारण यह योजना पूर्णरूप व्यवहारिक न रह सकी।
2018 में पोलैंड के काटोवाइस मेे आयोजित किया गया था। जिसमे पेरिस जलवायु समझौता की समीक्षा की गई । इस सम्मेलन में 192 देशों भाग लिया। सदस्य देशो ने अपने क्षेत्र में कार्बन को कम करने के प्रतिबद्वता तथा पारदर्शिता जाहिर की है किन्तु यह कानूनी रूप से बाध्यकारी संधी नही हैं।
इस सम्मेलन में पर्यावरण मंत्री डा0 हर्ष वर्धन ने भाग लिया था। भरतीय पवेलियन की थीम थी वन-वलर््ड, वन-सन, वन-ग्रीड थी। वित्त मंत्रालय ने आर्थिक विभाग ने ‘स्केल, स्कोप ,स्पीड एक प्रतिबिंब विषय पर परिचर्चा प्रस्तुत की। भारत पर्यावरण को संरक्षित करने के लिये ग्रीन गुड डीड्स की योजना पर कार्य करना है।
2019 जलवायु परिर्वतन स्पेन के मैड्रिड में काॅप 25 मेें आयोजित हुआ। इसमें 196 देशों ने भाग लिया। पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने जलवायु परिर्वतन में भारत की उपलब्धियों की जानकारी देते हुए कहा कि भारत ने कार्बन उत्सर्जन में 2030 तक 35 प्रतिशत की लाने के लक्ष्य पर काम करते हुए 21 प्रतिशत की कटौती कर ली है।
क्लाइमेट परफारमेन्स रिर्पोट, बा्रउन एंड ग्रीन रिर्पोट , क्लाइमेट एक्शन रिर्पोट सहित सभी रिर्पोटो में जलवयु परिर्वतन की चुनौतियों से निपटने मेे भारत के कार्यो की प्रशंसा की है।
भारत बेहतर प्रदर्शन में पांच देशो में शामिल हुआ है। गैर पारम्परिक उर्जा के उत्पादन से लेकर हरित क्षेत्र में विस्तार करने तक कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य किये है। चुनौतियों को कम करने के लिए पेरिस समझौते के तहत भरत प्रथम शीर्ष पांच देशो में शामिल हो गया । 2020 तक सभी देश अगले साल अपने उत्र्सजन में कमी के बढ़े हुए लक्ष्यों को घोषित करे।
क्लाइमेट परफारमेन्स रिर्पोट, बा्रउन एंड ग्रीन रिर्पोट , क्लाइमेट एक्शन रिर्पोट सहित सभी रिर्पोटो में जलवयु परिर्वतन की चुनौतियों से निपटने मेे भारत के कार्यो की प्रशंसा की है।
भारत बेहतर प्रदर्शन में पांच देशो में शामिल हुआ है। गैर पारम्परिक उर्जा के उत्पादन से लेकर हरित क्षेत्र में विस्तार करने तक कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य किये है। चुनौतियों को कम करने के लिए पेरिस समझौते के तहत भरत प्रथम शीर्ष पांच देशो में शामिल हो गया । 2020 तक सभी देश अगले साल अपने उत्र्सजन में कमी के बढ़े हुए लक्ष्यों को घोषित करे।
जलवायु क्षतिपूर्ति के मुद्दे को भी शामिल किया गया है। विकसित देश उन देशो की जलवायु परिर्वतन से उत्पन्न क्षति का सामना कर रहे है। लेकिन भारत समेत तमाम देश इसके लिए वित्तीय प्रबन्धन की मांग कर रहे है। मौजूदा जलवायु कोष से विकासशील देशो को मदद की जाये।
जलवायु परिर्वतन वार्ता के दौरान हरित कोष में हर साल 100 अरब डालर की राशी सुनिश्चित करने व अडाप्टेशन फंड बनाने का प्रावधान किया है किंतु इसका कोई ठोस नतीजा नही निकला।
अन्र्तराष्ट्रिय और राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कानून बनाना चाहिये। कानून बनाये बिना कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्य को हासिल नही किया जा सकता । इंडियन स्कूल आफ बिजनेस के निदेशक अंजल प्रकाश ने कहा है कि जबतक नीतियां कानूनी रूप से बाध्यकारी नही होगी तब तक जलवायु परिवर्तन से निपटना मुश्किल है ।
युनाइटेड नेशन सिक्योरिटी काउन्सिल में पी 7 देश रूस चीन अमेरिका फान्स व इगलैण्ड देश चाहते है कि युनाइटेड नेशन सीक्योरिटी काउंसिल के द्वारा जलवायु परिवर्तन पर कार्य किया जाये ।
यून0फ0सी0सी0 के सचिव अकबरूद्धीन ने कहा ने कहा कि भारत व अन्य विकासशील देश पर कि पेरिस समझौता पर ही कार्य को आगे किया जाये ।
यून0फ0सी0सी0 के सचिव अकबरूद्धीन ने कहा ने कहा कि भारत व अन्य विकासशील देश पर कि पेरिस समझौता पर ही कार्य को आगे किया जाये ।
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