जल संरक्षण अभियान आप और हम
जल ही जीवन है, जल के बिना किसी भी देश या दुनिया के आस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती है। हांलाकि पृथ्वी का तीन चैथाई भू-भाग समुद्र से घिरा है किन्तु यह पानी खारा होता है यह पीने योग्य नही है। केवल 20 प्रतिशत पानी ही पीने योग्य है। एक सर्वे के अनुसार पृथ्वी पर कुल जल 70 प्रतिशत है, जिसमें महासागर में प्राप्त जल 97.5 प्रतिशत है, बर्फ के रूप में अंर्टाटिका व ग्रीनलैण्ड में 2 प्रतिशत व शुद्द पीने योग्य जल 1.5 प्रतिशत है। भारत में कुल 4 प्रतिशत जल की उपलब्धता है जबकि विश्व की 15 प्रतिशत जनसंख्या के भारत में रहती है। जल एक दुर्लभ प्राकृतिक संपदा है। वर्तमान समय इसका उचित तरह से संर्वधन व संरक्षण करना ही भावी पीढ़ी के भविष्य के लिए अति आवश्यक है।
![]() |
जल संरक्षण अभियान आप और हम |
जल-संरक्षण की आवश्यकता
वर्तमान समय में जनसंख्या की वृद्दी के कारण शहरों का विकास हो रहा है। वन संपदाओ को काटकर नये भवन बनाये जा रहे हैै। ग्रामीण क्षेत्रों में कुएं तलाब व बावड़ी का निमार्ण नही हो रहा जो वर्षा के जल को रोकने का साधन थे। पेड़ो को काटकर कंक्रीट के जंगल बनाये जा रहे है। उद्योग धन्धों के लगाने के लिए भी काफी मात्रा में जल का दोहन किया जाता है। अनियमित मानसून होने के कारण कहीं बाढ़ व कहीं सूखा की स्थिति रहती है। हम वर्षा के जल संरक्षण नही कर पाते जिससे ज्यादातर पानी उपयोग में नही आ पाता हैै। परम्परागत कृषि की व्यवस्था के कारण बहुत सा सिंचाई का पानी व्यर्थ हो जाता है। ग्लोबल वार्मिग के कारण ग्लेशियर के पिघलने से जल संकट उन्पन्न हो रहा है। जिन क्षेत्रों मे प्रचुर मात्रा में उपलब्धता है वहां पर जल का दुरूपयोग हो रहा है।
मुख्य रूप से जल का प्रयोेेेेेेेेेेेेेग के तीन हिस्सेदार है।
किसान कृषि योग्य भूमि की सिंचाई के लिए 80 प्रतिशत जल प्रयोग करते है।कृषि भूमि की सिचाई के लिए जो पानी प्रयोग करता हैै उसका 30 से 35 प्रतिशत ही उपयोग कर पाता है बाकि व्यर्थ चला जाता है। खेतों में सिचाई के लिए पुराने स्रोतो से पानी जाता है जिससे बहुत सा पानी व्यर्थ हो जाता है।
उद्योग-धन्धों को निमार्ण के लिए जल प्रयोग करते है। औद्योगिक क्षेत्रों में भी 1क्यूबिक पानी से 1.9 डालर उर्जा उत्पन्न हो पाती जबकि अमेरिका में इससे 35 डालर उर्जा उत्पन्न होती है।
पीने योग्य पानी आम व्यक्ति जो रहने खाने -पीने में प्रयोग करता है। शहरी क्षेत्रों में जो पानी का वितरण होता है उसका 50 प्रतिशत व्यर्थ हो जाता हैै क्योंकि पानी की वितरण प्रणाली दोषपूर्ण है जिसके कारण पानी का रिसाव नलो व टंकियों से होता है।
भारत में तीन महिने ही मानसून होता है तथा इस जल से पूरे साल भर खेती की जाती है। जितना जल एकत्र होता उसका केवल 8 प्र्रतिशत जल धारक क्षमता (वाॅटर एफिसियन्सी) ही उपयोग कर पाते है। हमें 20 प्रतिशत जल धारक क्षमता (वाॅटर एफिसियन्सी) से काम करना है। नदियां मे वर्षा के जल को रोकने के लिए नदियों के किनारो को बढ़ना होगा जिससे नदियों मेें ज्यादा जल एकत्रित हो सके।
समय-समय पर विभिन्न राज्य व केन्द्र सरकारो द्वारा उठाये गये कदम
इज़मेन्ट एक्ट 1982 के तहत प्रत्येक भू-स्वामी को अपनी जमीन या सतह पर मौजूद पानी को जमा करने या उसकी सतह पर निस्तारित करने का अधिकार था। जल का अत्यधिक दोहन के कारण संविधान के तहत जल संबन्धित मामलों राज्य सूची में रखा गया है इसका अर्थ है राज्य विधान मंडल में कानून बना सकते है। अशोक चावला ने नदी जल विवादो व भौम जल के दोहन के कारण इसको समवर्ती सूची में डालने की सिफारिश की है।
2001 में सरकार ने भू-जल प्रबन्धन का माडल विधेयक का मसौदा प्रकाशित किया।
2012 में राष्ट्रिय जल नीति को रेखांकित किया गया जिससे पानी की मांग प्रबन्धन उपभोग क्षमता बुनियादी और मूल्य सम्बन्धी पहलुओं को स्पष्ट किया गया।
संविधान के अनुच्छेद 21 के अन्र्तगत प्रत्येक व्यक्ति को जल प्राप्त करने का मूलभूत अधिकार के रूप में विकसित किया है।
14 अप्रैल को भीव राव अम्बेडकर की जन्म दिन पर वर्ष 2013 को राष्ट्रिय जल संरक्षण दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन 1993 से 22मार्च को विश्व जल संरक्षण दिवस मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष विश्व जल दिवस की थीम बदलती है। 2019 की थीम वाटर फार आल, लिविंग नो वन बिहाइंड हैं।
अटल बिहारी बाजपेयी की महत्वकांक्षी योजना देश की सारी नदियों को जोड़ने के पर काम प्रयास किया जा रहा है किन्तु यह योजना जमीनी स्तर फलीभूत नही है।
देश के 40 प्रतिशत सूखे व जल संकट की का सामना करना पड़ रहा है। नीति आयोग द्वारा जारी समग्र जल प्रबन्धन सूचकांक के मुताबिक 60 करोड़ लोग पानी की कमी से गुजर रहे है।
वर्तमान सरकार द्वारा उठाये गये कदम
जल संकट की कमी के कारण प्रधानमंत्री मोदी जी ने अपने कार्यक्रम मन की बात में लोेेेेेेेगो से जल बचाने उसका उचित प्रयोग करने व वर्षा के जल का संचयन करने के आम व्यक्ति को इस अभियान से जुड़ने का आवाह्न किया है।
15 अगस्त को मोदी जी ने अपने राष्ट्र के संबोधन में जल संचयन के लिए युद्ध स्तर पर लोगो की भागीदारी के साथ जन आन्दोलन खड़ा करने का प्रयास करे तथा जनजागरूता अभियान के तहत बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने का आवाह्न किया है।
जल-शक्ति मंत्रालय का गठन किया गया है। ग्रजेन्द्र शेखावत को जल मंत्री का कार्य भार दिया गया है। 3.5 करोेड़ की राशी जल संचयन के लिए उपलब्ध कराई गयी है। केन्द्र सरकार द्वारा राज्य सरकारो द्वारा चलाई गयी योजनाओं का मंथन किया जा रहा है।
सरकार ने 255 जिलों में सचिव स्तर के वरिष्ठ अधिकारियों को नियुक्त किया गया है वे विभिन्न राज्यों में भ्रमण करेगे तथा 6 महीने में अपनी रिर्पोट प्रस्तुत करेगे की कि केन्द्र सरकार द्वारा जो योजराएं बनायी गयी है उनका राज्य स्तर पर क्रियान्वयन हुआ है।
जिले व ब्लाक स्तर पर 2 लाख 50 हजार सरपंचों को जलसंचयन के लिए कार्य के लिए कार्य करने के लिए कहा गया है। ग्राम स्वराज्य अभियान के अन्र्तगत मनरेगा जैसी योजराओं की राशी का प्रयोग तलाब कुंआ जलाशय भूजल -रिचार्ज , वाटरशेड विकास व वृक्षारोपण पर जोर दिया जायेगा।
जिले व ब्लाक स्तर पर 2 लाख 50 हजार सरपंचों को जलसंचयन के लिए कार्य के लिए कार्य करने के लिए कहा गया है।
नीति आयोग ने समग्र जल संरक्षण सुचकांक अगस्त 2018 में प्रकाशित किया गया।
सी0 डब्लु0 एम0 आई0 का पहला संस्करण 2018 में प्रकाशित किया गया इसमें 25 राज्यों व 2 केन्द्र शासित प्रदेशों को शामिल किया गया। जिसका इंडेक्स 2.0 में पिछले तीन वर्षाें 1915 से 1918 में हुई प्रगति को आधार बनाया है।
हिमालयी राज्यों में हिमांचल प्रदेश त्रिपुरा शीर्ष पर रहे, जबकि गैर हिमालयी राज्यों में गुजरात,आन्ध्र-प्रदेश शीर्ष पर रहें। कुछ राज्यों ने अपने राज्य की स्थिति में सुधार किया है किन्तु कुछ राज्यों की स्थिति और कमजोर हुई है।
देश के राज्यो व केन्द्र शासित प्रदेशो में जल संचयन के लिए प्रभावी अभियान
जल-मंत्री गजेन्द्र शेखावत ने जल से सम्बन्धित राज्य व केन्द्र सरकार के विभाग को पानी से जुड़े मंत्रालय पीने के पानी व सैनिटेशन से जुड़ा मंत्रालय, भूजल पुर्नगठन, नदियों से जुडे़ मंत्रालय आदि से मंत्रियों व अधिकारियों को बुलाकर दिल्ली में कार्य-शाला का आयोजन किया गया। सारे विभागों को एकसाथ जोड़कर सामूहिक रूप से हर घर में जल व हर खेत में जल पहंचाया जाये की योजना पर मन्थन किया जा रहा है।
आम व्यक्ति जल को नहाने धोने व दैनिक उपयोग में प्रयोग करता है। उसका 70 प्रतिशत वापस भूमि में चला जाता है। जो ग्रे वाटर है जो सेनिटेशन मे जाता है उसको भी रिसाइकिल कर सिचाई व अन्य प्रयोग किया जाये।
सरकार ने अपनी महत्वाकांक्षी योजना जल शक्ति अभियान की थीम संचय जल बेहतर कल पर 1 जुलाई से शुरू की है। प्रथम चरण 1जुलाई से 15 सितम्बर तक तथा दूसरा चरण 1 अक्टूबर से 30 नवम्बर तक मानसून के प्रभावों की समीक्षा की जायेगी।
वर्षा के जल को संचयन कैसे किया जाये ---
वृहद स्तर पर भू-जल का संचयन बडे़ स्तर पर बांध बना कर जल को रोका जाता है जैसा भाखड़ा नंगल बांध, नार्गाजुन बांध, टिहरी बांध आदि । बड़े बांध नही बनाये जा सकते क्योकि भूमि की उलब्धता में कठिनाई आती है।
छोटे स्तर पर भू-जल का संचयन जमीन के पानी को रोकने के लिए कुए तालाब नहरे बावड़ी बनाकर वर्षा के जल का संचयन करना चाहिये। इसीलिए प्राचीन समय में जल देवता के रूप में जल की पूजा की जाती थी
व्यक्तिगत स्तर पर वर्षा जल का संचयन जगह-जगह पर व्यक्तिगत छोटे स्तर पर वर्षा भूमि पर गहरे गड्ढा बनाकर वर्षा के जल को रोकने का प्रयास करना चाहिए। गांव व शहरों में घर के छत पर या जमीन वर्षा के जल को रोकने के लिए टंकिया बनाये गये है जहां वर्षा के जल के एकत्र किया जाये अर्थात रेन वाटर हारवेस्टिंग की जाये । हर घर में जल कोे विकसित करने के लिए संसाधन जुटायें।
जिन भू-भागों मेें जल संकट हो उन क्षेत्रों ऐसी फसले उगाई जाये जिससे सिंचाई की कम आावश्यकता हो । किसानो को भी परम्परागत खेती को छोड़ कर नयी प्रकार की फसलों की पैदावार के लिए प्रोत्साहन देना चाहिये।
माइक्रो इरिगेेेशन व छिड़काव से सिंचाई की जानी चाहिए अर्थात जब खेत में जितनी आवश्यकता हो उतना पानी दिया जाये।
जल को रिसाइकिलिग की जाये जिससे वह जल दोबारा सिंचाई के प्रयोग में आ सके।
सोशल मिडिया व वाट्ऐप के द्वारा जल के संचयन के लिए जागरूकता पैदा की जाये।
विज्ञापनो व नुक्कड़ नाटको के द्वारा जल को रोकने सन्देश प्रसारित व प्रचारित करना चाहिए।
स्कूलों में जल को व्यर्थ में जल को न बरबाद करने की शिक्षा देनी चाहिए तथा कहीं पर भी जल बह रहा है तो बंद किया जाये। पानी के स्रोतो को पुर्नजिवित करना चाहिए।
जल-संरक्षण केे लिए कदम विभिन्न राज्य सरकारो द्वारा सराहनीय उठाये गये हैं
हरियााणा सरकार द्वारा किसानो को 50 हजार हेक्टेयर भूमि पर मक्का बाजरा प्रोत्साहित किया है, 2000 रूपये प्रति हेक्टेयर राशी प्रदान की गईं।
महाराष्ट्र सरकार द्वारा 3 लाख हेक्टेयर भूमि पर गन्ना की फसल के लिए माइक्रो सिचाई पद्दति का प्रयोग किया जा रहा है।
पंजाब सरकार द्वारा जल बचाओ पैसो पाओ अभियान के तहत जल की बचत पर बिजली की सब्सिडी दी जा रही है।
राजस्थान में जहां पर वर्षा 400 या 500 मिलिमटर होती है वहां पर वर्षा के जल को जलाशयों टांकियां व बावड़ियों रोककर साल भर पीने व सिंचाई के लिए उपलबध कराया जाता है।
प्रति व्यक्ति पानी के खपत को भी कम करना है। सरकार का यह प्रयास है कि 2024 तक हर व्यक्ति को नल से जल पहुँचाया जायेगा।
दक्षिण अफ्रिका के केपटउन शहर में जल संकट के चलते हर व्यक्ति एक दिन में केवल 2 लीटर पानी ही प्रयोग करने को दिया गया। कई अन्य शहरों जीरो लैण्ड घोषित किया गया। डे जीरो उस दिन को कहते है जिस दिन जल में पानी नही आता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने कहा है कि 2032 तक पृथ्वी आधे से अधिक आबादी को पीने का जल नही मिल पायेगा। यह बहुत की चिंतनीय विषय है।
जल संरक्षण के समान वितरण के लिए इजराइल की नीति अपनायी जाये जहां पर वृक्षों में चिप लगाकर उसकी आवश्यकता के अनुसार सिंचाई की जाती है।
अन्र्तराष्ट्रिय जल प्रबन्धन के अनुसार 2050 तक देश की अधिकांश नदियों में जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। जन-संख्या विस्फोट भी जल संकट को गहराता है। इसलिए जल की एक-एक बूंद का बचाने में हम सबका सहयोग अपेक्षित है। जल-संरक्षण व जल-संचयन भावी पीढ़ी के लिए दी गई अनमोल सौगात है।
3 comments:
लेख बहुत अच्छी तरह संकलित तथा प्रेरणादायक। जारी रखें
very informative 👍
Very informative and detailed article.
Post a Comment