माॅब-लिंचिंग --- भीड़-तंत्र द्वारा हत्या या हत्या का प्रयास

माॅब-लिंचिंग --- भीड़-तंत्र द्वारा हत्या या हत्या का प्रयास


        भीड़-तंत्र द्वारा आम व्यक्ति की हत्या करना ही माॅब-लिंचिंग  है। लोकतंत्र पर भीड़तंत्र पर हावी होकर हिंसा करना एक दण्डनीय अपराध है। धार्मिक कट्टरता  व वैचारिक मतभेद, वैमनस्य, विद्वेश की भावना, असहिषुण्ता इसके मूल कारण है। शक के आधार पर या अफवाहों द्वारा माॅब-लिंचिंग की घटनायें पहले भी घटित होती थी, किन्तु आजकल सोशल मीडिया, वाट्स्ऐप, इंस्टाग्राम, इन्टरनेट के माध्यम द्वारा यह विडियो  वायरल हो जाता है। यहाँ पर तथाकथित बुद्दिजीवी वर्ग का एक तबका लेखक, इतिहासकार  तथा रंगमंच व फिल्मी जगत के कई कलाकर जैसे  राम चन्द्र गुहा, श्याम वेनेगल, अनुराग वासु शुभ्रा मुदगल आदि लोग अपने अर्नगल बयानबाजी से इस समस्या को जटिल करते है। इसके अन्र्तगत सामूहिक  रूप से   व्यक्तियों द्वारा अपने गुस्से को काबू नहीं कर पाने के कारण कानून को हाथ में लेकर किसी व्यक्ति की हत्या का जघन्य अपराध कर देता हैै। यह भी देखा गया है कि समाज के अपराधिक तत्व इस तरह की वारदात में अपना सक्रिय योगदान देते है। यह अपराधिक तत्व हर धर्म व सम्प्रदाय में फल-फूल रहे है, तथा उन्हे राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। कभी-कभी अपनी व्यक्तिगत शत्रुता निकालने के लिए हत्या कर देते है तथा उसे भीड़तंत्र द्वारा हत्या का अमली-जामा पहना देते है।

         भीड़-तंत्र द्वारा हत्या या हत्या का प्रयास
                                           
माॅब-लिंचिंग
माॅब-लिंचिंग


     
ज्यादा तर व्यक्ति समाज की भोली-भाली व अशिक्षित जनता को भड़काऊ भाषण देकर गुमराह करते  है। हिन्दु-मुस्लिम, दलित अल्पसंख्यक आदि वर्गों मेें बांटकर वारदात को  अंजाम देते है। आजकल तो जैसे माॅब-लिंचिंग की घटनाओं की बाढ़ सी आ गई है। इन घटनाओं से कोई भी प्रदेश अछुता नहीं है। मानव अधिकार की संस्था ऐमेनेस्टि इंटरनेेशनल संस्था ने अपने सर्वे में कहा है कि उत्तर-प्रदेश, गुजरात, बंगाल, झारखण्ड, राजस्थान, बिहार, तमिलनाडु में माॅब-लिंचिंग की घटनायें लगातार बढ़ रही है। भीड़-तंत्र द्वारा हत्या का अंजाम देने में हिन्दु-मुस्लिम व अल्पसंख्यक समुदाय का त्रिकोण भी परिलक्षित होता हैं। इसप्रकार की घटनाओं के कारण घरेलु व विदेशी निवेश प्रभावित होता है, समाज की आर्थिक प्रगति बाधक होती है तथा पर्यटन उद्योग को क्षति होती है। देश-विदेश में भारत की छवि धूमिल होती है। 

व्यवहारिक व मनोवैज्ञानिक कारण  

व्यवहारिक व मनोवैज्ञानिक पहलु यह है कि समाज में आपस से भाईचारे व सौर्हाद का वातावरण नहीं रहता। अपनी व्यक्तिगत समस्याओं से उलझा व्यक्ति का गुस्सा अपने चरम पर रहता है। वह बात -बात पर अपने  क्रोध को  झगड़ा गाली-गलोज,  मार-पीट कर निकालने का प्रयास करता है जो वारदात का कारण बनता है।

प्रशासनिक कारण                

कभी -कभी प्रशासनिक लापरवाही भी हत्या को उकसाती है। जब पीड़ित व्यक्ति द्वारा बार-बार पुलिस  च ौकी में शिकायत दर्ज कराने का प्रयास किया जाता है किन्तु असंवेदनशील पुलिस वालों द्वारा उनकी शिकायतों को नजरअन्दाज कर थाने से भगा दिया जाता है तो यह व्यक्ति कुछ लोगों के समूह को एकत्र कर स्वयं अराजक व्यक्ति को सजा देने के लिए कानून को अपने हाथ में ले लेता है। 

राजनीतिक कारण

  राजनीतिक संरक्षण प्राप्त व्यक्ति भी इस काण्ड में शामिल रहते हैं। राजनितिज्ञो द्वारा  जब कोई मुद्दा समझ में नहीं आता है तब छोटी सी वारदात को हिन्दु-मुस्लिम का रंग दे दिया जाता है जो आग में घी काम करता है। चोरी डकैती व छिनैती की वारदात को भी हत्या की वारदात में तब्दील कर दिया जाता है।

यहाँ पर हम कुछ वारदातो का जिक्र करते है। जैसे गो वंश हत्या, पशु चोरी, बच्चा चोरी की अफवाह, किसी महिला को डायन बताना, मंदिर में तोड़-फोड़ करना, दलितो को मंदिर प्रवेश न करने देना, हिन्दु या मुस्लिम धर्म पर आपत्ति जनक टिप्पणी करना  किसी धर्म-विशेष  के नारो का उच्चारण करवाना आदि। गाजियाबाद में गाय के हत्या के शक में अखलाक की हत्या, पश्चिम बंगाल में भीड़ द्वारा विशेष धर्म के व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या, झारखण्ड में जय-श्री राम का नारा न लगाने पर हत्या करना आदि कुछ उदाहरण हैं। कानून की लचर व्यवस्था के कारण व्यक्ति  हत्या का गंभीर  अपराध करके भी छूट जाता है जिससे भीड़तंत्र की हत्या को बल मिलता है। 

       हम यहाँ पर वर्ष  2012 से 2019 में घटित माॅब-लिचिंग की घटनाओं  का आकलन प्रस्तुत करते हैं।  
          कुल माॅब-लिंचिंग की घटनायें--127       घटना से पीड़ित --302,     घटना में मृत्यु 47            
          गंभीर चोट  - 172,                     साधारण चोट-  83

   आई0पी0सी0 कोड में भीड़ हत्या पर कानून नहीं है। कानून द्वारा भीड़तंत्र की हत्या को परिभाषित नहीं किया गया है जिससे कोई दण्डात्मक कार्यवाही सुनिश्चित नही हो पाती है। यहाँ पर हम कुछ धाराओं का उल्लेख करते है।
   धारा 302 -हत्या की घटना,      धारा 307- हत्या का प्रयास,    धारा 323 -जानबूझकर हिंसा भड़काना, 
   धारा 147 दंगा की  वारदात ,   धारा 148 दंगा भड़काना,     धारा 149  हथियारों से हिंसा करना।

  सी0आर0पी0सी0 में धारा 322 के अन्र्तगत मुकदमा दर्ज होने पर यह पता नही चल पाता कि  भीड़ में किसने मारा है जिससे वह बच जाता हैे। मानव सुरक्षा कानून भी बनाया गया है किन्तु यह पूर्णतया कारगर नही हो सका है। यहाँ पर कानून तो है लेकिन इनका क्रियानव्यन सख्ती से नही किया जा रहा हैै।

  सामाजिक कार्यकर्ता तुषार गांधी व तहसीन पूनावाला ने माबलिंचिंग की घटनाओं के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका डाली गयी थी। जिसकी सुनवायी करते हुए कोर्ट ने क्रेन्द्र व राज्य सरकार  को इसके सम्बिधित कानून बनाने के लिए कहा गया है। 

 सुधार,  रोकथाम व  सजा देने के लिए उठाये गये कदम

सुप्रीम कोर्ट ने 2118 में कुछ महत्वपूर्ण दिशार्निदेश केन्द्र व राज्य सरकारों को  दिये है तथा दोनो सरकारो को आपसी सामंजस्य से इन घटनाओ पर लगाम लगाया जा सके। 

सेन्टृल व स्टेट गवर्नमेन्ट द्वारा सुरक्षा के सन्दर्भ में सामन्जस्य स्थापित करने काम करने की आवश्यकता है।

 भीड़तंत्र द्वारा हत्या को रोकने के लिए राज्य स्तर पर प्रत्येक जिले में एस0पी0 रैेंक का अधिकारी नियुक्त किया जाए। जो घटना की निष्पक्ष जाँच करे।

राज्य सरकार को गाँव व जिले स्तर पर उस जगह को चिन्हित करना जहाँ पर वह घटना घटी है। पुलिस को घटना की जगह पर भीड़ को नियन्त्रित करना। तथा पीड़ितो का केस तुरन्त संज्ञान मे लेकर इसके मूल में छिपे विवाद की पूर्ण विवेचना करे, तथा तीन हफते के अन्दर विवाद को सुलझाये तीन महीन के अन्दर पीड़ित को जुर्माना देना होगा। फास्टैक कोर्ट के द्वारा 6 महीने के अन्दर इसको सुलझाया जाये तथा तर्क पूर्ण  निष्कर्ष पर पहुँचा जाये। 

भीड़ द्वारा पीट-पीट कर हत्या करने वालो पर आई0पी0सी0 की धारा 302 के तहत जिसके अन्र्तगत अधिकतम सजा फांसी की है का प्रावधान करना चाहिए।
अगर प्रशासनिक अधिकारी कार्य में लापरवाही करते है तो उन्हे निलंबित किया जाये।

सोशल मीडिया रेडियो टीवी व समाचार पत्रों के माध्यम से अफवाह फैलाने वालों को दण्डात्मक कार्यवाही की जाये।

फेसबुक व वाट्सऐप के जरिये  झूठी वायरल खबरो को रोकने के लिए मैसेज फारर्वड फीचर को  एक्टिीवेट करने के वालो का आई0 कार्ड भी उपलब्ध कराना अनिवार्य होगा क्योंकि अगर जरूरत पड़े तो जवाब-तलब किया जा सके। 

इस तरह से सख्ती के साथ अपराध करने वालो को बक्शा नही जायेगा चाहे वो किसी भी राज्य धर्म जाति या सम्प्रदाय का होगा। 

मणिपुर ऐसा राज्य हैै जहाँ सबसे पहले माॅब-लिंचिंग के खिलाफ उल्लेखनीय कानून पारित किया है।

न्यूजीलैण्ड में ऐसी घटना पर देश के प्रधानमंत्री व पूरा विपक्ष एकजुट होकर सामूहिक प्रयास  रोकने का किया गया।

जर्मनी ने अपने देश में यहूदी सम्प्रदाय से होने वाले गलत व्यवहार को रोकने के लिए शिक्षा के प्रसार द्वारा किया गया।

स्वीटजरलैण्ड इस तरह की घटनाओं के रोकने के लिए सारे युवाओ को एकजुट कर लिया था तथा यह घटना दुबारा अपना सिर न उठा सके।

इस तरह से हम यह कह सकते हैं कि आये दिन  माब-लिंचिंग की घटनाओं देश प्रदेश का वतावरण दूषित होता है। देश के प्रबुद्द जन, बुद्दिजीवी वर्ग, सत्ता पक्ष विपक्ष के नेताओं, विभिन्न धर्म-गुरूओं, काजी, मौलानाओं व समाजिक कार्यकर्ताओं को एक जुट होकर इस सामाजिक बुराई को   सुधारने का प्रयास करता चाहिये। जन आन्दोलन खड़ाकर माब-लिंचिंग की वारदात को सिरे नकारना चाहिए तथा दोषियों को कानून के तहत सख्त कार्यवाही करनी चाहिए। युवाओं को जन-जागरूकता व शिक्षा का प्रचार व प्रसार कर भीड़-हिंसा को रोकने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देना चाहिए तथा समाज में परस्पर सौर्हाद व भाईचारे  वातावरण बनाना चाहिए।

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Hi. I’m Madhu Parmarthi. I’m a free lance writer. I write blog articles in Hindi. I write on various contemporary social issues, current affairs, environmental issues, lifestyle etc. .

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