ग्लोबल वार्मिंग एक समस्या व समाधान


ग्लोबल वार्मिंग एक समस्या व समाधान

        प्राकृतिक प्रदत्त संसाधनो के दुरूपयोग की जनक ही है ‘ग्लोबल वार्मिग‘। वैश्विक स्तर पर विश्व के तापमान का बढ़ना एक गंभीर समस्या है। जलवायु परिर्वतन व ग्लोबल वार्मिंग एक सिक्के के दो पहलु की तरह देखा जा सकता है। औद्योगिक क्र्रान्ती के साथ तकनीकी ज्ञान का उपयोग कर गगनचुम्बी इमारतों का निर्माण, परिवहन के नये-नये साधन, आटोमोबाइल उद्योगों का विकास, जंगलों को काटकर शहरों का विस्तार,ही कार्बन उत्र्सजन में भूमिका निभातें हैं। विश्व स्तर पर प्राकृतिक साधनों का दोहन कर नये समाज की कल्पना की जा रही है किन्तु इनके निर्माण से निकलने वाली धुआं गैस व अन्य रसायनिक द्रव्य वायुमण्डल के तापमान बढाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।

                                                           
 ग्रीन हाउस गैस व ग्रीन हाउस इफैक्ट 
      पृथ्वी के वायुमण्डल निम्न प्रकार की गैसे पायी जाती है जैसे -नाइट्रोजन-78 प्रतिशत, आक्सीजन  21प्रतिशत,       कार्बन-डाइआक्साइड, -0.03 प्रतिशत व अन्य गैसे  0.97 प्रतिशत  आदि। किन्तु नाइट्रोजन व आक्सीजनपर्यावरण के लिए    लाभदायक गैसे है। किन्तु कार्बन-डाइआक्साइड,  मिथेन, सल्फर-डाइआक्साइड, ओजोन,   जलवाष्पक्लारो-फ्लोरो-कार्बन, हाइड्रोफ्लोरो  कार्बन   आदि   ग्रीन हाउस गैस  कहलाती हैं।  जब वायुमंडल में सूर्य की किरणें  टकराती  है तब कुछ अवषोशित  हो जाती हैं  तथा  कुछ पृथ्वी से बाहर आकाश में चली जाती हैं जो  पृथ्वी के वातावरण को गर्म रखने में सहायक है। ये गैसे सूर्य के ताप को रोकती है जिससे पृथ्वी की निचली परत के आसपास पर्याप्त मात्रा से ज्यादा उष्मा एकत्रित हो जाती है, जो पर्यावरण के लिए के लिए हानिकारक है। 

       1824 जोसेफ फोरियर ने ग्रीन हाउस गैस की संकल्पना की थी। ग्रीन हाउस- ठन्डी जलवायु के क्षेत्र मे फल व सब्जियों को उत्पन्न करने के लिए एक ग्लास की बना घर होता है जिसमें ग्रीन हाउस गैसे भर दी जाती है जिससे सूर्य की उष्मा अवषोशित हो जाती  है तथा सब्जियों को गर्म तापमान में उत्पन्न होने में सहायक है। इसको ही ग्रीन हाउस इफैक्ट कहते हैं। जब वायुमण्डल ग्रीनहाउस गैस का आवश्यकता से ज्यादा अवशोषण हो जाता है तथा हानिकारक गैस पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर नहीं जा पाती है तो पृथ्वी का तापमान उतरोत्तर  वृद्दी दर्ज की जाती है, ग्रीन हाउस इफैक्ट कहलाता है ।              
  ग्लोबल वार्मिंग के कारण           
            प्राकृतिक कारण जैसे भूकंप व ज्वालामुखी का फटना आदि कारण जिससे पृथ्वी के तापमान में उष्मा एकत्रित हो जाती है। दूसरा मानवीय कारण जो ग्रीन-हाउस गैसों को बढ़ाने में सहायक है।

         वन एक प्रकार से कार्बडाइआक्साइड को सोखते है जिसे कार्बन सिंक कहा जाता है तथा आक्सीजन को छोड़कर वायुमंडल को स्वच्छ करते है। लेकिन शहरीकरण के साथ-साथ वनो की प्रचुर मात्रा में कटाई के कारण  कार्बन डाइ आक्साइड का स्तर बढ़ जाता है जो तापमान में वृद्दी  करता है।

       औद्योगीकरण के कारण नये कल-कारखानो उद्योग-धन्धों को विकसित किया जा रहे है जो चिमनियों से धुंआ गैस व अन्य रसायनिक द्रव्यों का उत्सर्जन करते है जिससे वायुमंडल में  हानिकारक गैसें एकत्रित हो जाती है ।

      विद्युत उत्पादन के लिए बड़ी मात्रा  में जीवाश्म ईधन जैसे कोयला गैस व तेल का प्रयोग किया जा रहा है जो कार्बन की मात्रा को बढाने में सहायक है। परिवहन के साधन जैसे मोटर-गाड़ी आदि में पैट्रोल-डीजल का प्रयोग से धुए का उत्र्सजन होता है जो वायुमंडज को प्रभावित करता है। घरों में खाने बनाने में कोयले का प्रयोग होता है।

      ग्रीन हाउस गैसों के प्रतिशत में लगातार वृद्वि जिसके कारण पृथ्वी के वायुमंडल बाहर जाने वाली उष्मा दैनिक जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती है जिससे तापमान  बढ़ता जा रहा है। पृथ्वी का औसत तापमान लगभग 14 से 15 डिग्री सेल्शियस अनुमानित है लेकिन इसके तापमान में 1.5 से ज्यादा की वृद्दी  दर्ज हो रही है कहीं पर यह 2 से 3 डिग्री सेल्शियस से ज्यादा भी हो सकता है।                                      
 जलवायु परिर्वतन कारण मौसम में असन्तुलन

कहीं-कहीं पर अत्यधिक वर्षा के कारण बाढ़ आने का खतरा, कहीं वर्षा न होने कारण सूखा पड़ता है, कहीं शीत-लहर कहीं ताप-लहर, जिससे मानव व पशु-पक्षी व पेड़-पौधों फसलों के आस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। जैसे उत्तर पूर्व आसाम मेघलय में बारिश बहुत कम होती है या बहुत ज्यादा होती है। सूखा, भूजल संकट  जंगल में आग आदि का खतरा बना रहता है। कहीे सुनामी, भूकंप व तूफान का खतरा रहता है। अत्यधिक ताप के बढ़ने हिमालय पर ग्लेशियर के पिघलने नदियों के जल-स्तर में निरन्तर वृद्वि देखी जाती है।  तापमान के बढ़ने से अंर्टाटिका व आर्टिक में बर्फ के पिघलने से समुद्र का जलस्तर बढ़ जायेगा जिससे तटीय क्षेत्रों के जलमग्न होने का खतरा रहता है।
 
  हम यहाँ पर विश्व के प्रमुख कार्बन उत्र्सजक देश   का उल्लेख करते है।

   
           चीन -                        30 प्रतिशत
          अमेरिका-                     15 प्रतिशत 
          भारत-                          7 प्रतिशत
          योरोपिय संघ-                9 प्रतिशत
         

                           
विश्व स्तर पर
    अब हम ग्लोबल वार्मिग को कम करने के लिए वैश्विक स्तर पर्यावण सन्तुलन के लिए उठाये गये कदमों का उल्लेख करते है।

         1972 वर्ष  में स्टाकहोम में पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया गया था जिसमे पर्यावरण संरक्षण पर जोर दिया गया था।

      2 जून 1992 वर्ष में यू0एन0एफ0सी0 रियो पृथ्वी सम्मेलन ब्राजील में आयोजित किया गया जिससे विश्व स्तर पर ताममान को नियत्रिंत करने   ग्लोबल वार्मिंग के सम्बन्ध में काॅप कानफ्रेन्स आफ पार्टीस  का गठन का मुद्दा उठाया गया था।

      1997 में क्योटो प्रोटोकाल सम्मेलन जपान में हुआ था जिसमें बड़े विकसित देश इस बात पर जोर दे रहे है कि कर्बन उत्र्सजन को कम करने का प्रयास किया जाये। कार्बन बचाने व कार्बन बेचने की योजना जिसे कार्बन ट्रेडिंग कहते है के लिये प्रयोग किया जाये किन्तु  योजना यह अपने लक्ष्य तक नहीं पहँच सकी।

     2015 में पेरिस जलवायु सम्मेलन  जिसे काॅप 21 कानफ्रेन्स आफ पार्टीस  जिसमें सोवियत राष्ट्र की अगुवाई में आई0पी0सी0सी0  की रिपोर्ट पर ग्लोबल वार्मिग को लेकर चिन्ता व्यक्त की गई थीं। सभी सदस्य 177 देशों भाग लिया था। कहा गया था कि वे अपने देश में कार्बनउत्र्सजन पर लगाम लगायें। जिसके अन्र्तगत 62 मिलियन की राशी प्रदान की गई ।

    ग्रीन क्लाइमेट फन्ड  बनाया जाये जिससे  विकसित देशों को 100 मिलियन डालर की राशी अविकसित व विकासशील देशों को 2020 तक मुहैया कराई जाये जिससे ये देश तकनीकी ज्ञान के साथ अपने देशो के कार्बन उत्र्सजन को कम कर सके। इस राशी के द्वारा विभिन्न विकासशील देशों में 19 प्रोजक्ट लगाये जाने की योजना है जिसमें इंडोनेशिया का जियो- थर्मल-पावर-प्रोजक्ट व भारत के तटीय क्षेत्रों के भी प्रोजेक्ट शामिल है। किन्तु इसके लिए तो 4.4 ट्रिलयन डालर की आवश्यकता है।

    पृथ्वी के तापमान से 2 डिग्री सेल्शियस से ज्यादा न बढ़ने दिया जाये,तथा पृथ्वी के तापमान 2030 तक 1.5 डिग्री सेल्शियस रखने का लक्ष्य र्निधारित किया जाये। किन्तु अमेरिका ने पेरिस सम्मेलन से अपने को अलग कर लिया, जिसके कारण यह योजना पूर्णरूप व्यवहारिक न रह सकी।

         संयुक्त राष्ट्र की अध्यक्षता में कोरिया मेें आयोजित 1-5 अक्टूबर 2018  में आई0पी0सी0सी0 की  रिपोर्ट में विभिन्न देशो के वैज्ञानिको व विशेषज्ञों के समूह ने वैज्ञानिक तकनीकों की मदद से रिर्पोट प्रस्तुत की गई। जिसमें कहा गया कि 2030 तक विश्व के तापमान को 1.5 डिग्री तक सीमित किया जाये तथा 2030 से 2052 तक कार्बन उत्र्सजन को नकारात्मक किया जाये। इस रिर्पोट में विभिन्न आकड़े दिये गये जिसमें परिवहन उद्योग में 65 प्रतिशत व भवन, निर्माण में 80 प्रतिशत कार्बन उत्र्सजित होता है। अगर इस पर लगाम न लगाई गई तो विश्व की अर्थव्यस्था चरमरा जायेगी। यह एक वैज्ञानिक चेतावनी है।

      वर्ष  2018   में  पोलैंड के काटोवाइस में आयोजित किया गया था। जिसमे पेरिस जलवायु समझौता की समीक्षा की गई  इस सम्मेलन में  192 देशों भाग लिया। नेशनल डिटरमिन्ट कन्ट्रीज़ को इस समस्या के समाधान के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति से कदम उठाने की आवश्यकता हैं। सदस्य देशो ने अपने क्षेत्र में कार्बन को कम करने के प्रतिबद्वता तथा पारदर्शिता जाहिर की है किन्तु यह कानूनी रूप से बाध्यकारी संधी नही हैं।

        इस सम्मेलन में  पर्यावरण मंत्री डा0 हर्ष वर्धन ने भाग लिया था। भरतीय पवेलियन की थीम थी वन-वलर् वन-सन, वन-ग्रीड थी।  वित्त मंत्रालय ने आर्थिक विभाग ने ‘स्केल, स्कोप ,स्पीड एक प्रतिबिंब ....  विषय पर परिचर्चा प्रस्तुत की। भारत पर्यावरण को संरक्षित करने के लिये ग्रीन गुड डीड्स की योजना पर कार्य करना है। भारतीय पहल पर अंर्तराष्ट्रिय सौर गठबन्धन आस्तित्व में आया तथा भारत ने 2030 तक कुल बिजली का 40 प्रतिशत जीवाष्म स्रोतो से प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
  विश्व स्तर पर
           

 अब हम यहाँ पर उर्पयुक्त समझौता  पर विश्व स्तर पर
उठाये गये कदमों का विश्लेषण करते है। कार्बन उत्सर्जन
को के करने के लिए विभिन्न देशों द्वारा उठाये गये
 कदमों का उल्लेख करते है।

     

       अमेरिका के कैलिर्फोनिया में वर्ष 2035 तक हर गाड़ी इलेक्ट्रिक ईंजन से चलायी जाये ऐसा कानून बनाया गया है।  नार्वे में वर्ष 2015 तक हर गाड़ी इलेक्ट्रिक ईंजन की होगी। इंगलैंड में बिना इलेक्ट्रिक ईंजन के टैक्सी उपयोग नहीं की जायेगी।
       राष्ट्रपति टंप के इस समझौते से अलग कर लिया तथा विकसित देश इस ओर अपना ध्यान नही दे रहे वे अपने देश की अर्थवयवस्था को सुधारने में लगें है। चीन व अमेरिका अपने उद्योग नीति के विवाद में उलझे है। ग्लोबल लीडरशिप में योरोपियन संघ चीन भारत ब्राजील मैक्सिकों आदि देश मिलकर आम सहमती से सामूहिक रूप से जलवायु परिर्वतन पर दृढ़प्रतिज्ञ होकर प्रयास करना चाहिये।
     देश के स्तर पर
     दूसरे देश क्या कर रहें या नहीं लेकिन हमें अपने राष्ट्र स्तर पर अपने संसाधनों का उपयोग कर समस्या का समाधान करना चाहिये।
कैम्पा फन्ड बनाया गया है जिसके अन्र्तगत जिस वन भूमि का प्रयोग उद्योग-धन्धों लगाये जाय तो इस फन्ड में एकत्रित जमा राशी से वन लगाये जाये तथा वन संरक्षण पर जोर दिया जाये।

  स्र्माट-सिटी बनाने के लिये पर्यावरण के नियमों का ध्यान रखते हुए पेड़-पौधा से युक्त भवनों का निर्माण  किया जाये। ग्रीन हाउस गैस के उत्र्सजन में कटौती की जाये तथा उन्हे इको -फ्रेंडली संसाधनों कर प्रयोग जाये। रसायनिक द्रव्यों के उज्र्सजन को रोककर उसको दुबारा प्रयोग में लाये की प्रणाली विकसित की जाये । हमें उर्जा उत्पन्न करने के लिए तेल, गैस, व कोयला जैसे जीवष्म ईधन का प्रयोग सीमित कर जैविक स्रोतो का प्रयोग किया जायें।

     अक्षय-उर्जा जैसे सौर-उर्जा व पवन शक्ति का उपयोग  उर्जा उत्पादन किया जाये। उत्तर प्रदेश के जौनपुर में 75 मेघावाट सौर-उर्जा-संयत्र से बिजली उत्पन्न की जा रही है। भारत के प्रयासो के कारण हम पवन-उर्जा के उत्पादन में 4थे तथा सौर उर्जा के उत्पादन में 5चवे स्थान पर है। फ्रान्स व अन्य देशो  के साथ मिलकर अन्र्तराष्ट्र सौर गठबन्धन पर सहयोग कर रहें है।

        हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्रों में छोटे-छोटे बांध बनाना कर पहाड़ों में बिजली उत्पन्न की जा रही है। कचरा-वेस्ट , बायोमास (गोबर), व सीवेज वेस्ट का प्रयोग उर्जा के उत्पन्न करने का प्रयास करने की प्रणाली को विकसिम किया जा रहा है।  इलैक्ट्रिक गाड़ियोे का प्रयोग किया जाये जिसे शुरू में सरकार द्वारा सब्सिडी दी जाये।  1अप्रैल 2020 तक सभी गाड़ियां  बी0एस0 6 मानक की होंगी। स्ी0एन0जी0 गाड़ियों का प्रयोग किया जाये।

       जर्मनी में 36 प्रतिशत बिजली जैविक ईधन से बनती हैं भारत में 10 प्रतिशत सौर उर्जा से बनती है। 310 मिलियन एल0ई0डी0 बल्बों का प्रयोग कर उर्जा कर बचत की है। उज्जवला गैस योजना के द्वारा 58 मिलियन परिवारो के स्वास्थय-लाभ  व वनो के कटाई की बचत की है।

        नेशनल एक्ट प्लान आॅन क्लाइमेट चेंज में कहा गया है कि जो विकास तटीय क्षेत्रों में हो रहा है वह सुनामी आने से तबाह हो जायेगा । जैसे उड़ीसा व केरल आदि राज्यो में आया तूफान, इसलिए सेन्ट्रल स्टेट डिस्ट्रिट व लोकल लेवल मेें ताल-मेल बिठा कर काम करना चाहिये। ग्रीन टेक्नालाजी व आलर्टनेटिव तरीके की जरूरत है।                                                                 
    व्यक्ति के स्तर पर
        प्रत्येक व्यक्ति के स्तर जल व बिजली  बचाने के लिए यथा संभव प्रयास करना चाहिए, कार्यालस व सार्वजनिक स्थलों पर अनाश्यक रूप से बहते जल को बन्द करना चाहिये, पर्यावरण में सन्तुलन रखने के लिए  सामूहिक परिवहन के  साधनों का उपयोग करना चाहिए। अपने हर जन्मदिन पर एक पौधा लगाने की मुहिम पर बल देना चाहिये।

        ग्लोबल वार्मिग की समस्या को देखते विश्व स्तर पर अर्थ आवर शूट डे मनाया जाता  है इसका तात्पर्य यह है कि पृथ्वी पर उपलब्ध  एक साल में विश्व को  जितना प्राकृतिक संसाधन उपयोग के लिए दिया जाता है उसको हम खतम  कर लेते है। पहले यह दिसम्बर में मनाया जाता था। किन्तु 1 अगस्त 2018 को मनाया गया था अर्थात हमने अपने कोटे का संसाधन 5 महीने पहले ही खतम कर दिया तथा शेष महीने हम बोनस का उपायोग कर रहे थे। हर साल अर्थ आवर शू डे प्रकाशित किया जाता हैै।

       डब्लु0डब्लु0एफ0 अन्र्तराष्ट्रिय संस्था  द्वारा हर वर्ष मार्च के आखिरी शनिवार को प्रातः 8.30 से 9.30 को एक घंटे के लिए घर कार्यालय व सार्वजनिक स्थलों की बिजली व पंखा आदि को बंद कर मनाया जाता है।

     स्ंयुक्त राष्ट्र द्वारा कार्बन उत्र्सजन को लेकर सम्मेलन में प्रस्तुत किये वादो व दिशा-निर्देशो को जब तक व्यवहारिक धरातल पर मूर्तरूप देने की दृढ इच्छा शक्ति नही होगी तब तक यह योजनायें कागजी शेर ही समझी जायेंगी। जलवायु परिवर्तन व पर्यावरण असन्तुलन की वैज्ञानिक चेतावनी को हम अगर नजरअंदाज  करते है तो  हम अपने विनाश की पटकथा स्वंय ही लिखेगें। प्रकृति की अनमोल धरोहर जल, वायु, पृथ्वी व आकाश को संरक्षित रखना हमारा परम कर्तव्य है।






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Hi. I’m Madhu Parmarthi. I’m a free lance writer. I write blog articles in Hindi. I write on various contemporary social issues, current affairs, environmental issues, lifestyle etc. .

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2 comments:

Archita Srivastava said...

very informative and well written

Anonymous said...

A very well written article with full of facts