पत्रकारिता फर्जी खबरें (फेंक न्यूज) का चक्रव्युह



पत्रकारिता फर्जी खबरें (फेंक न्यूज) का चक्रव्युह

          संचार क्रान्ति के कारण सूचनाओं का प्रचार एवं प्रसार दु्रत गति से हो रहा है। पारदर्शी व निष्पक्ष पत्रकारिता को देश का ‘च ौथा स्तम्भ’ कहा जाता है। समाज सुधार के दृष्टिकोण के तहत व्यक्ति को परस्पर जोड़ते समाचार देशहित राष्ट्रहित और समाज हित जनजीवन में जागरूकता की अलख जगाते हैं। यहाँ पर सूचनाओं के प्रसार में प्रिन्ट मीड़िया व इलेक्ट्रानिक मीड़िया के मानकों का जिक्र करते हैं। प्रिन्ट मीड़िया के अन्तर्गत रेडियो , समाचार-पत्र, पत्रिका आदि आते हैं जबकि इलेक्ट्रानिक मीड़िया के अन्तर्गत टी0वी0, फेसबुक, इण्टरनेट ट्वििटर, व्टासअप, सोशल साईटिस व गुग्गल आदि आते हैं।

पत्रकारिता फर्जी खबरें (फेंक न्यूज) का चक्रव्युह
पत्रकारिता फर्जी खबरें (फेंक न्यूज) का चक्रव्युह

         यहाँ पर मीड़िया की स्वतंत्रता का जामा पहनाकर कुछ निजी स्वार्थों के तहत अपनी निजी विचारधाराओं को समाज में परोसने में समर्थ है। निष्पक्ष पत्रकारिता की कसौटी पर फर्जी खबरों का जमावड़ा असंमजस व भ्रम की स्थिति खड़ा कर देता है। सत्य खबरों की जगह फर्जी खबरों के फैलने की गति बिना पंख के उड़ जाती है। हालांकि प्रतिष्ठित मीड़िया के द्वारा समाचारों के प्रसार के लिए ‘प्रेस काउसिंल आफ इण्डिया’ और ‘नेशनल ब्रोडकास्टिंग ऐजेन्सी’ के नियम व कानून के तहत ही जवाबदेही तय करते है। हम यह कह सकते हैं कि खबरें सरकार की योजनाओं पर आधारित पर होती, कुछ सम्पादकीय विचारों से पे्ररित होती है, कुछ विज्ञापनों पर आधारित होती है। कुछ खबरें सत्ता और विपक्ष के विचारों पर आधारित होती है।

         आंशिक सत्य खबर को झूठ की चाशनी में लपेटकर प्रस्तुत किया जाता है कि मानों पूरी ही खबर ही सत्य प्रतीत होती है। पहले यह कहावत प्रचलित थी कि ‘झूठ के पाॅव नहीं होते’, किन्तु आज के संदर्भ में हम कह सकते हैं कि झूठी खबरे सत्य को पछाड़ने में पूर्णतया सक्षम है। मुठ्ठी भर लोगां के द्वारा फर्जी खबरों का प्रसार अस्सी प्रतिशत लोगों को अपनी गिरफ्त में ले लेता है।

        फेक न्यूज या येलो जर्नललिस्म प्रचार व प्रचार का हिस्सा है। जिनके अन्तर्गत झूठी खबरों को फैलाया जाता है। इनको तीन-चार श्रेणियों में बाँटा गया है जैसे-हास्य-व्यंग, भ्रामक सामग्री व विकृत सामग्री और बनावटी सामग्री। वैसे तो सोशल साइ्टस के द्वारा भ्रामक सामग्रियों का प्रसार किया जाता है। किन्तु कभी-कभी कुछ मीडिया चैनल वित्तीय प्रलोभन या टी0आर0पी0 के चक्कर में फर्जी खबरों को प्रसार करने में अपना योगदान देते हैं। हम यह कह सकते हैं कि इन खबरों के सत्यता की परख कैसे करें और आम आदमी इन खबरों का उद्गम को पता लगाने में असमर्थ है।

       आजकल सोशल मीडिया में फेक न्यूज के साथ-साथ पोस्ट ट्रूथ  का जमाना आ गया है। यह फर्जी खबरें लोगों की भावनाओं से खेलते हुए सत्य को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया जाता है। सोशल साइ्टस पर कुछ लोगों के समूह व ऐजेन्सियाँ अपनी निजी स्वार्थों से प्रेरित होकर देश की सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक स्थिति को प्रभावित करने के लिए फर्जी खबर को लोगों को भेजते हैं जो कि कुछ ही मिनटों में पूरे सोशल साइ्टस में वायरल हो जाता है। दैनिक जीवन में प्रत्येक व्यक्ति व्टासएप, ट्विटर, इस्टाग्राम से जुड़ा है। वह इन साइ्टस पर आने वाली खबरों को बिना जाँचे-परखे आगे बढ़़ाने में अपना योगदान देता है।


     फेंक न्यूज ने देश व पूरी दुनिया के लोगों को प्रभावित किया है। यहाँ पर इसके कुछ उदाहरण दे रहें हैं। 
1. यूनेस्कों द्वारा भारत और भारतीय राष्ट्रगान को सर्वश्रेष्ठ बताना भी फेक न्यूज का हिस्सा था।
2. इसराइल द्वारा पाकिस्तान को न्यूक्लियर धमकी देना।
3. अमेरिका के राष्ट्रपति के चुनाव में ट्रम्प को सोशल साइट्स द्वारा तकनीक का दुरूपयोग करके चुनाव के नतीेजे को प्रभावित किया।
4. खजूर खाने से निपाह वायरस फैलता है। यह वायरल हो गया है।
5. दो हजार के नोट पर नैनों चिप का लगा होना।
6. कभी-कभी फर्जी खबरों के द्वारा भ्रामक उन्माद पैदा किया जाता है जैसे हिन्दू-मुस्लिम तनाव, गोवंश हत्या आदि।
अब हम यहाँ पर अन्य देशों में उठाये गये फर्जी खबरों के कदमों के प्रसार को रोकने के लिए उठाये गये कदमों के बारे में ध्यान केन्द्रित करना चाहते हैं। मलेशिया में फर्जी खबरों को फैलाने के लिए छः साल की कैद का प्रावधान है। यूरोपीय देशों में सूचना व तकनीकी मानकों का प्रयोग कर इन खबरों को रोकने के लिए कानून बनाने का प्रयास किया जा रहा है। जर्मनी व इटली में भी इन खबरों के लिए रोकने के लिए कानून बनाये जा रहे हैं।

वर्तमान समय में देश मंे फेक न्यूज के प्रसारण में लगाम लगाने के लिए निम्न प्रावधान किये है-

1. फर्जी खबरों को रोकने के लिए आई0टी0 एक्ट के अन्तर्गत आई0पी0सी0 की धारा 468 और 469 के अनुसार सात साल की सजा व जुर्माने का प्रावधान है। 
2. व्टासएप के भ्रामक संदेशों को रोकने के लिए फारवर्ड मेसेज का एक बार में पाँच तक सीमित किया गया है। 
3. फेसबुक में गलत सूचनाओं को रोकने के लिए निजी व स्थानीय समाचार संस्थानों के साथ मिलकर काम करने की पुष्टि की गई है।
4. गुग्गुल ने भी अपने सर्च इंजन में फैक्ट्स चेक टूल को जोड़ दिया है।

उपरोक्त प्रयासों के साथ साथ इन सोशल साइ्टिस पर खबरों को रोकने के लिए पी0सी0आई0 और एन0डी0ए0 की तरह सोशल मीडिया और आनलाइन न्यूज पोर्टल निश्चित दिशा-निर्देश के साथ कानून बनाने का प्रयास किया जा रहा है जो स्वायत्त होगा।
पत्रकारिता सम्बंधी समस्याओं के समाधान के लिए स्वतंत्र व व्यवसायिक पत्रकारिता को बल देना चाहिए, खोजी व उच्च गुणवत्ता वाली पत्रकारिता को बढ़ावा दे, फेक न्यूज को परिभाषित करना चाहिए तथा डिजिटल मीडिया की साक्षरता और कौशल विकास केन्द्रों द्वारा युवाओं में जागरूकता पैदा करना चाहिए। पुरानी फेक न्यूज को हटाने व फेक एकाउन्ट को बन्द करने की कार्य योजना बनानी चाहिए। मीडिया संगठन द्वारा बी0बी0सी0 व चैनल फोर की साइ्टिस को तथ्यों की जाँच करने के लिए निश्चित किया गया है।

साइबर कानून विशेषज्ञ पवन दुग्गुल का कहना है कि केवल कानून के बल पर फर्जी खबरो के जखीरे को खत्म नहीं किया जा सकता है जब तक कि व्यक्ति में जागरूकता और सजगता का समावेश नहीं होगा। 



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Hi. I’m Madhu Parmarthi. I’m a free lance writer. I write blog articles in Hindi. I write on various contemporary social issues, current affairs, environmental issues, lifestyle etc. .

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