बच्चों व किशोर युवाओं में मोबाइल की लत

बच्चों व युवाओं में मोबाइल की लत
   आज के युग में तकनीकी के प्रयोग ने नये-नये अविष्कारों को जन्म दिया जिसमें मोबाइल फोन बहुत सुदृढ़ साधन है जिससे आप दुनिया के किसी कोने से या दूर-दराज के गाँवों में अपनी सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। भारत में करीब 700 मिलियन लोग मोबाइल फोन प्रयोग करते  है जिसमें 500 मिलियन स्मार्ट फोन प्रयोग करते है। 2016 में  करीब लोग 78 प्रतिशत इन्टरनेट प्रयोग करते थे अब इनका प्रयोग 92 प्रतिशत हो गया है। एक सर्वे के अनुसार शहरों में 3 से 4 घंटे मोबाइल देखते है व ग्रामीण क्षेत्र में 1से 2 घंटे मोबाइल देखते है। भारत की 80 प्रतिशत आबादी मोबाइल का प्रयोग करती है। स्मार्टफोन के द्वारा किसी भी विषय में ज्ञान अर्जित किया जा सकता है तथा मनोरंजन के साधन भी उपलब्ध कराता है। किन्तु इसका नकारात्मक पहलु जैसे मोबाइल फोन की लत बाल मन व युवा-जन को अपने गिरफ्त में ले लिया है। देखने में यह आता है कि बच्चें  व किशोर होते युवा स्वयं को फोन की दुनिया में समेटते नजर आते है।
मोबाइल फोन की लत
     सुख-सुविधा सम्पन्न माता-पिता अपने छोटे-छोटे नौनिहालों को मोबाइल फोन पर र्काटून-पिक्चर, गाने, कविता आदि दिखाते है। कभी-कभी वह बच्चों को भोजन खिलाते  मोबाइल दिखाते है। काम-काजी व एकल परिवार के  बच्चों को व्यस्त रखने के लिए मोबाइल देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते है। ये बच्चे मोबाइल-गेम देखने में इतने मगन हो जाते है उसके देखे बिना उनका खाना हजम नहीं होता। ये बच्चे हमउम्र दोस्तो के साथ रहते हुए भी खेलने की बजाय मोबाइल देखने में व्यस्त रहते है। बालमन में इन चलचित्रो की काल्पनिक दुनिया में गोते लगाते कब किशोर होते युवा हो जाते है किन्तु उनकी मोबाइल की लत कम नही हो पाती तथा वे माता-पिता की सलाह की अवहेलना करते हुए इस मोबाइल फोन की दुनिया में स्वयं को कैद कर लेते है। 
बच्चों व किशोर युवाओं में मोबाइल की लत
बच्चों व किशोर युवाओं में मोबाइल की लत

बच्चों में मोबाइल की लत से नुकसान
 मोबाइल फोन देखने की आदत से बच्चे अपना ध्यान ठीक तरह से पढ़ाई में नही लगा पाते। छोटे बच्चों को स्कूल पाठ्यकक्रम को याद करने व अभ्यास करने का समय नहीं मिल पाता। इसके चलते वे खेल-कूद व व्ययाम नही कर पाते। वह मोबाइल के काल्पनिक पात्र में स्वयं  को पूर्णतया डुबो लेते हैं। एक स्थान पर बैठ कर देखने से आँखों पर बुरा असर पड़ता है तथा मोटापा भी बढ़ता है।
 मोबाइल की लत के शिकार बच्चे अपने हमउम्र दोस्तो से बालसुलभ बातों का आदान-प्रदान नही करते व परिवार के सदस्यों से कोई सरोकार नहीं रहता। अकेले में बैठकर मोबाइल की स्क्रीन पर आँखें गड़ाना उन्हें सकून देता है। कभी-कभी ये बच्चे इतने मगन हो जातें हैं कि अगर उनको रोका गया तो आक्रमक रवैया अपनाते है कभी वे स्वयं को हानि पहँचाते है तथा कभी सामने वाले को हानि पहुँचाने का प्रयास करते हैं।
किशोर होते युवाओं में मोबाइल का क्रेज
      इस उम्र के किशोर  में आभासी दुनिया या वर्चुअल वल्र्ड की दुनिया से उनका जुड़ाव देखने को मिलना हैै। वे मोबाइल में गुग्गल गुरू से जुड़कर इंटरनेट की दुनिया में गोते लगाते हैं। आजकल ज्यादातर युवा  रात में सोते समय तकीये के पास मोबाइल को रखते है तथा रात में मोबाइल को देेखते हुए तथा सुबह उठते ही मोबाइल को देखते हैं। 11 से 12घंटे मोबाइल पर बिताने वाले युवाओं को नोमो (नो-मोबाइल) फोेेेबिया  हो जाता है जिसके कारण वे मोबाइल से दूर हो जाये तो उन्हे बेचैनी हो जाती है। इसी तरह फोमो (फियर-आफ-मोबइल) फोबिया जिसमें अगर मोबाइल बंद हो जाये तो डर लगने लगता है।
       वाट्सऐप, फेसबुक,  इंस्टाग्राम पर सक्रीय हो जाते है। उनमें सेल्फी लेने का क्रेज उन्हे मजबूर करता है। पल-पल सेल्फी पोस्ट करने लाइक व शेयर  कमेन्ट करने का जनून सवार हो जाता है। कभी-कभी सेल्फी को क्रेज उन्हेें खतरनाक जगहों पर सेल्फी लेने से रोक न पाता तथा जान गवांने का खतरा बना रहता है। युवा स्वयं को अपने आस-पड़ोस व समाज की  गतिविधियो को तटस्थ कर लेते है।
    मोबाइल में दिखाई जाने वाली अश्लील सामग्री युवा जन को भ्रमित करती है जिससे वे हिंसक वारदात को अन्जाम देने में नहीं हिचकते जैसे  मार-पीट चोरी डकैती अपहरण बलात्कार आदि।

अब हम यहाँ पर मोबाइल फोन से जुड़े कुछ रोचक तथ्यो का उल्लेख करते है।
  • एप्पल कम्पनी के मालिक स्टीव जाब्स ने अपने बच्चों को 16 वर्ष की उम्र तक मोबाइल के प्रयोग से दूर रखा।
  • गुग्गल, माइक्रोसाफ्ट व फेसबुक आदि कम्पनियों में काम करने वाले लगभग 80 प्रतिशत लोगा ने अपने घरों में बच्चों को मोबाइल व इंटरनेट से दूर रखा है।
  • अमेंरिकन पिडियाट्रिक एसोसिएशन ने  छोटे बच्चो को मोबाइल देखने का स्क्रीन टाइम 30 मिनट से ज्यादा नही होना चाहिए। आजकल बच्चे बौद्धिक रूप से विकसित होने  पर भी शारिरिक रूप से कमजोर होते हैं।
  • मोबाइल पर ज्यादा इस्तेमाल से मस्तिष्क का हिस्सा जिसे इंसुला कहते हैं प्रभावित हो जाता है, जिससे उनमें मानवीय संवेदना दया क्षमा का भाव नहीं उपजता है।
  • डा0 डेविस डेवरा मोबाइल के प्रयोग से बच्चों में रेडिएशन का खतरा रहता है। इसके साथ ही आँखों के रोशनी जाने का खतरा रहते है।
  • एम्स में हुए सर्वे में प्रकाशित इलेक्ट्रो मैग्नेट रेडिएशन  की रिर्पोट में कहा गया है कि  मोबाइल का ज्यादा प्रयोग  से ट्युमर का खतरा  रहता है।
   मोबाइल की लत से बच्चों को दूर  रखने के लिए किये गये प्रयास का उल्लेख करते है।
      छोटे  बच्चों को मोबाइल का ज्यादा  न प्रयोग करने दे, उन्हें अपने सामने बैठा कर गेम खेलने दे तथा उसका समय निर्धारित करे। बच्चोें को पार्क में ले जाकर हम-उम्र बच्चों के साथ खेलने दे। भाग-दौड़ कबड्डी बैडमिंटन, खो-खो खेलने को प्रेरित करें। बच्चोें को बड़े महापुरूषों के जीवन से सम्बन्धित पुस्तके पढ़ने को प्रेरित करे। बच्चो करे राष्ट्रिय संग्राहालय, दर्शनीय पर्यटक स्थल  में घुमाने ले जाये।
 बच्चोें की योग्यता के अनुसार रचनात्मक रूचि के कार्य जैसे ड्राइंग पेंटिग गायन जूडो-कराटे आदि सिखाये। खाली समय में बच्चोें के साथ माता-पिता व रिश्ते-दारो पारिवारिक मित्रो के साथ पिकनिक पर ले जायें। हमउम्र बच्चोें के साथ घुलमिल कर खेलने दे तथा उन्हे खिलौने व खाने की वस्तुए बांट कर प्रयोग करने दें। बड़े छोटे को सम्मान देने का भाव जाग्रत करे तथा दादी-बाबा के साथ कहानी सुनने को प्रेरित करे। इन छोटे-छोटे उपायो से बच्चोें को मोबाइल फोन से दूर रहने का प्रयास कर सकते है।

      किशोर होते युवाओं को अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करने के लिए प्रेरित करें जिस भी क्षेत्र में पढ़ाई की रूचि हो उन्हे चुनने में उनकी मदद करें।अब हम यहाँ पर मोबाइल से दूरी बनाने के  कुछ महत्वपूर्ण उपायो का उल्लेख करते है। वाट्सऐप, फेसबुक,  इंस्टाग्राम पर थोड़ी दूरी बना कर रखे। नोटिफिकेशन को बंद कर दे। बार-बार मोबाइल चेक करने की आदत को रोक दे। सोशल मीडिया व इंटरनेट पर ज्यादा न रहे।  किसी भी अनजाने व्यक्ति से  आनलाइन चैटिंग न करें नही तो  ब्लैक-मेलिग का शिकार हो सकते है।  देर रात अंधेरे में मोबाइल न देखे। इसके साथ ही साथ माता-पिता व रिश्तेदारो के साथ समय व्यतीत करे। सामजिक कार्य जैसे वृक्षरोपण, स्वच्छता अभियान में हिस्सा ले। गरीब बच्चों  को पढ़ाई में मदद करे, व बुजुर्गाे की सेवा करे।
  मोबाइल देखना बुरा नही है किन्तु आवश्यकता से ज्यादा देखना उनके स्वस्थ्य मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डालता है इसका नशा महामारी की तरह युवाओं में फल-फूल  रहा है। इस आदत को कम कर आदर्श युवा समाज में मत्वपूर्ण योगदान देने में समर्थ होगें।   यहाँ  पर हम कह सकते है  कि यह एक   सुविधा जनक साधन   है।      किन्तु इसका प्रयोग संतुलित रूप से किया जाये तो यह ज्ञानवद्धर्क अविष्कार है। युवाओं  को इन्टरनेट मोबाइल के नाकारात्मक पहलु के रूप में इसके गुलाम नही होना चाहिए।







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Hi. I’m Madhu Parmarthi. I’m a free lance writer. I write blog articles in Hindi. I write on various contemporary social issues, current affairs, environmental issues, lifestyle etc. .

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1 comments:

Archita Srivastava said...

rightly said... this is a major problem with today's youth 👍