कन्या भ्रूण हत्या

कन्या भ्रूण हत्या

      21वीं सदी की ओर बढ़ते समाज में नारी शक्ति अपनी चहुँमुखी प्रतिभा से प्रगति के पथ पर अग्रसर है। देश नारी शक्ति को सम्मान की दृष्टि से देखता है। नारी का उज्जवल भविष्य हर दिशा में अपनी अमिट छाप छोड़ रहा है। इतना सब होने के बावजूद भारतीय संस्कृति की पुरानी कुरीति कन्या भू्रण हत्या ने मन को झकझोर कर रख दिया है। पुरूष प्रधान समाज में पुत्र प्राप्ति को उपहार के रूप में देखा जाता हैं, वहीं जनमानस में पुत्री को लेकर एक संशय की स्थिति है। उसे एक बोझ और पराया धन के रूप में देखा जाता है। यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात यह है कि दोनों ही माता-पिता के अटूट संबल है, जो भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाने में सक्षम है। बेटियों के योगदान को कमतर नहीं आंका जा सकता। कन्या भ्रूण हत्या (बेटे की चाह में बेटी को गर्भ में समाप्त करना) के कारणों पर दृष्टि डालने पर यह कह सकते हैं कि हमें समाज के धार्मिक, सामाजिक और मानसिक पहलुओं पर विचार करना चाहिए।

      भारतीय समाज में धार्मिक कारण यह है कि पुत्ररत्न को वंश वृद्धि, धार्मिक अनुष्ठान, दाहसंस्कार आदि मान्यता को जोड़कर देखा जाता है। पुत्र को वृद्धावस्था का खेवनहार तथा बुढ़ापे की लाठी समझा जाता है। वहीं पुत्र की चाह में सामाजिक पहलु, अशिक्षा, बालविवाह, दहेज प्रथा, कन्या असुरक्षा आदि पाया गया है। इस कारण में समाज में लैंगिक असमानता अपना सिर उठा रहीं हैं। प्रति 100 पुरूष में स्त्री का प्रतिशत 95 है, वहीं विश्व में आँकडा 100 पुरूष में 105 स्त्रियों का है। यहाँ पर कुछ प्रदेश हरियाणा, पंजाब, राजस्था के ग्रामीण आंचल में बेटे की तुलना में बेटियों की संख्या काफी कम है। समाज का ताना-बाना इस मानसिकता के साथ गढ़ा गया है कि पुत्र जन्म को घर का चिराग समझा जाता है। इसके अभाव को जीवन का सूनापन समझा जाता है।
      अब हम इस ज्वलंत समस्या के निवारण के लिए सामाजिक कार्यकताओं तथा सरकार द्वारा उठाये गये कदमों का उल्लेख करते हैं-
(1) ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ बेटी को पढ़ा-लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा होने पर जोर देना चाहिए। माता-पिता को केवल विवाह कर अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं समझना चाहिए। शिक्षित कन्या से परिवार और समाज का कल्याण होता है।
(2) नैतिक शिक्षा के अन्तर्गत बचपन से ही बच्चों में मानवीय मूल्यों और सौहार्द की भावना को बल देना चाहिए। विशेषकर बेटों के उच्चखंल व्यवहार को नजरअन्दाज नहीं करना चाहिए।
(3) पितृसत्तात्मक पक्ष से इतर बालिकाओं को माता-पिता की सम्पत्ति में समानता का अधिकार देना चाहिए। (4) आकाशवाणी, दूरदर्शन, समाचार-पत्रों तथा सामाजिक नुक्कड़-नाटकों के द्वारा ग्रामीण परिवेश में बेटा-बेटी को समानता के अधिकार का संदेश देना चाहिए।
(5) बालविवाह प्रथा समाप्त करने के लिए कन्या के विवाह की आयु 18 वर्ष की गई है। इसके अलावा सरकार ने बालिकाओं को प्रोत्साहन देने के लिए ‘बालिका दिवस’, ‘बालिका वर्ष’, ‘बेटी बचाओं और बेटी पढ़ाओं’ योजना को फलीभूत किया जा रहा है। बेटी को निःशुल्क पढ़ाने को प्रयास किया जा रहा है।

      सरकार ने कानून बनाकर पी0एन0डी0टी0 एक्ट 2003 के अन्तर्गत लिंग परीक्षण को कानून अपराध माना गया है। इसका उल्लंघन करने पर माता-पिता तथा चिकित्सक को तीन वर्ष की कारावास एवं जुर्माने का प्रावधान है। केवल योजनाओं, कानूनों, नारों के द्वारा कन्या भ्रूण हत्या पर लगाम नहीं लगाया जा सकता जब तक कि भारतीय समाज की रूढ़िवादी परम्परा को बदला नहीं जा सकता है, तब तक यह उपाय कारगर नहीं सिद्ध होगा।
      अब हम इसके व्यवहारिक पक्ष की ओर ध्यान देना चाहते हैं कि यहाँ अभिजात वर्ग व ग्रामीण वर्ग में कहीं न कहीं बेटों की चाह मन में दबी रहती है। पुत्र के बिना परिवार पूर्ण नहीं माना जाता। कन्या भू्रण हत्या में कुछ हद तक कमी आई है, किन्तु इसका प्रतिशत अभी भी बहुत कम है। हमारा संकल्प भावी पीढ़ी को स्वस्थ समाज दे जो बेटा-बेटी दोनों कन्धे से कन्धा मिलाकर नये समाज के सृजन में अपना योगदान दे। जनचेतना और जागरूकता ही इस अक्षम्य अपराध को समाप्त करने में लगाम लगा सकती है। यहाँ हम यह संदेश देना चाहते हैं कि आधुनिकता के परिवेश में पली-बढ़ी यह युवा पीढ़ी इस कुरीति को नकारने मंे पूर्णतः सक्षम है।



   





    
     



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Hi. I’m Madhu Parmarthi. I’m a free lance writer. I write blog articles in Hindi. I write on various contemporary social issues, current affairs, environmental issues, lifestyle etc. .

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