बाल मन में उपजता आक्रोश
भौतिकता की चाह में पाश्चात्य सभ्यता के अन्धानुकरण ने भारतीय संस्कृति को ऐसे दोराहे पर खड़ा कर दिया है जहाँ मानवीय मूल्यों-दया, क्षमा, सहनशीलता का अभाव-पूर्णरूप से परिलक्षित होता है। संयुक्त परिवार से बिखरता एकल परिवार भाग-दौड़ की व्यस्त जिन्दगी में माता-पिता अपने नौनिहालों को समुचित समय नहीं दे पाते जिससे अपरिपक्व बालमन अपने मनमानी पर उतर आता है।
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बाल मन में उपजता आक्रोश |
सामान्य व कामकाजी माता-पिता के बच्चों को क्रेश, डे-केयर सेन्टर और डे-बोर्डिग में भेजते हैं जो कि बच्चों की परवरिश का व्यवसायिक केन्द्र है, जहाँ उनकी बालसुलभ कोमल भावना का कोई स्थान नहीं होता। माता-पिता के बच्चों में अकेलेपन के कारण आक्रोश उपजता है तथा बच्चों की जायज व नाजायज माँगों को नजरअन्दाज कर देने के कारण उनका व्यवहार उग्र हो जाता है। अपनी बात को मनवाने के लिए क्रोध प्रकट करते हैं तथा माता-पिता के विपरीत अपने विचारों को व्यक्त करते हैं। समय के अभाव के कारण उनकी नाजायज माँगों को पूर्ण करने के लिए उनको भौतिक साजो ंसमान जैसे मोबाईल, टी0वी0, फिल्म, विडियो गेम प्रदान कर देते हैं जिनके द्वारा वे अव्यवहारिक काल्पनिक दुनिया में जीते हैं। छोटी-छोटी बातों को मनवाने का बालहठ किशोर होते हुए बच्चों में अनियंत्रित क्रोध का रूप धारण कर लेता है। सुविधासम्पन्न किशोर खेल-खेल में बड़े-बड़े अपराधों जैसे नशा, मारपीट, चोरी, हत्या के जघन्य अपराधों के दलदल में फंस जाते हैं।
अब हम यहाँ पर बच्चे के क्रोध के कारणों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए उसके व्यवहारिक और मनोवैज्ञानिक पक्ष की ओर इंगित करते हैं-
(1) परवरिश में उचित देखभाल का अभाव,
(2) माता-पिता के अतिव्यस्तता से उपजता अकेलापन और
(3) फिल्म और वीडियों गेम की काल्पनिक दुनिया को सत्य मान लेना।
यहाँ पर परवरिश से सम्बन्धित कुछ सैद्धान्तिक व बुनियादी विचारों को प्रस्तुत करते हंै जिससे बच्चों के व्यवहार में आशातीत सफलता प्राप्त की जा सकती है जैसे-
(1) माता-पिता को बच्चों की परवरिश में बड़े बुजुर्ग (नानी, दादी आदि) के संरक्षण में रखना चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो सके उनकी बाल सुलभ जिज्ञासा को बिना डाँट-फटकार के शान्त करना चाहिए,
(2) कम से कम सुबह के समय बच्चो को अपने कोमल स्पर्श से उठाएँ तथा प्यार-दुलार के साथ उन्हें यह अहसास कराएँ कि वे आपके लिए कितने अनमोल हैं जिससे वे अपनी बातों को बिना झिझक के कह सके,
(3) बच्चों को रात के भोजन में साथ खाने की आदत डाले तथा उनके स्कूल के किये गये दिनभर के कार्यों में जानकारी ले और उनके दोस्त और सहपाठी के बारे में भी जानकारी ले,
(4) रात को सोते समय बच्चों को लोककथाएँ, परीकथाएँ आदि कहानियों से बच्चों को सुनाएँ तथा बड़े और सफल व महान लोगों के जीवन के बारे में भी परिचित कराएँ,
(5) टी0वी0, मोबाईल आदि देखने की समय-सीमा तय करें,
(6) बच्चों को हमेशा सकरात्मक सोच को विकसित करने का प्रयास करें एवं उनको दूसरों की सहायता करने के लिए प्रेरित करें, बच्चों को अपने से बड़े और छोटे के प्रति प्यार और सम्मान की भावना रखनी चाहिए,
(7) योग, व्यायाम और अनुशासित दिनचर्या भी बच्चों को स्वस्थ किशोर के रूप में परिवर्तित करती है,
(8) बच्चों को मनोरंजन की पुस्तकें पढ़ने के लिए प्रेरित करें जो उनकी तार्किक और बौद्धिक क्षमता विकसित होगी, योग्यता के अनुसार उन्हें रचनात्मक कार्यों के लिए प्रेरित करें तथा अच्छे कार्यों के लिए पुरस्कार और गलत कार्यों के लिए न करने का सुझाव दे,
(9) छोटी-छोटी जिम्मेदारी पूर्ण करने का भी लक्ष्य दे। बच्चों को अपनी रूचि व योग्यता के अनुसार अपने मनपसन्द क्षेत्र को चुनने की स्वतंत्रता दे जिससे वे उस क्षेत्र में अपना नया मुकाम हासिल कर सके एवं
(10) माता-पिता स्वयं भी एक आदर्श के रूप में बच्चों के सामने प्रस्तुत होना चाहिए।
यहाँ पर हम यह कह सकते हैं कि बाल-सुलभ आक्रोश को कुछ हद तक व्यवहारिक परिवर्तन करके कम किया जा सकता है। अगर इन उपरोक्त प्रयासों के बावजूद बच्चों के आक्रोश में कमी नहीं आ रही है तो मनोवैज्ञानिक काउन्सलर की देखरेख में उनके व्यवहार को संतुलित किया जा सकता है तथा जो बच्चों के मन की गुत्थी को सुलझाने में समर्थ होते हैं। आगे चलकर ये खिलखिाते नौनिहाल समाज व देश के लिए आदर्श नागरिक के रूप में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सके।
2 comments:
thought provoking...
Very thoughtful
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